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[ विविलास
विशेषता यह है कि उपयोगरूप ज्ञान में स्व- परप्रकाशक शक्ति है, साथ ही उसमें ऐसा प्रखण्ड प्रकाश है, जो अपने स्वरूप के प्रकाशन में निश्चल व्याप्य व्यापकभाव से लीन रहता है। ज्ञान में पर का प्रकाशन तो है, परन्तु व्यापकरूप एकता नहीं; अतः 'उपचार' संज्ञा है, लेकिन वस्तु की शक्ति उपचरित नहीं होती ।
इसी का विशेष वर्णन आगे करते हैं ।
कुछ मिथ्यावादी ऐसा मानते हैं कि ज्ञान में जो शेय का जानपना है, वही उसकी प्रशुद्धता है । तथा उस शेय का जानपना जब मिढेंगा, तब ज्ञान की अशुद्धता मिटेगी !
यह मान्यता उचित नहीं, क्योंकि ज्ञान में ऐसी स्व-परप्रकाशकता अपने सहज स्वभाव से है, वह अशुद्धभाव नहीं है । अरूपी आत्मप्रदेशों में प्रकाशमान लोक और अलोक के आकाररूप होकर उपयोग मेचक ( अनेकाकार) हुआ है । मही कहा है :
"नीरूपात्मप्रदेश प्रकाशमान लोकालोका कार मेचकोपयोग लक्षणा स्वच्छत्वशक्तिः, १
सामान्यार्थ :- अमूर्तिक आत्मा के प्रदेशों में प्रकाशमान लोक - अलोक के आकाररूप मेचक उपयोग जिसका लक्षण है, वह स्वच्छत्व सक्ति है ।"
१. समयसार गरिशिष्ट ११वीं स्वच्छ शक्ति