Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 130
________________ १२६ ] [विविलास ज्ञेय का अवलम्बन लेकर उसे छोड़ देती है। क्योंकि ज्ञेय का सम्बन्ध अस्थिर है, ज्ञ यावलम्बी परिणाम भी झूट जाते हैं अतः ज्ञेय और ज्ञ यावलम्बी परिणाम निजवस्तु नहीं हैं । जो ज्ञेय का अवलम्बन लेनेवाली शक्ति को धारण करती है, वह चेतनावस्तु है। वह ज्ञय के साथ मिलने से से अशुद्ध तो हो गई है, परन्तु शक्ति को अपेक्षा शुद्ध और गुप्त है । जो वस्तु शुद्ध है, वही रहती (टिकती) है, तथा जो अशुद्ध है, वह नहीं रहती (टिकनी); क्योंकि अशुद्धता ऊपरी मल है, जबकि शुद्धता स्वरूप की शक्ति है । __ जैसे स्फटिकमरिण में लाल रंग दिखता है, परन्तु वह स्फटिक का स्वभाव नहीं है; अतः मिट जाता है, जबकि स्वभाव नहीं मिटता। जैसे मयूर-मकरन्द में (मयूर के प्रतिबिम्बवाले दर्पण में) मयूर (मोर) दिखाई पड़ता है, पर उसमें वास्तव में मयूर है नहीं; उसीप्रकार कर्मदृष्टि में आत्मा परस्वरूप होकर भासित होता है, परन्तु वास्तव में वह पररवरूप नहीं होता। जैसे धतूरे के पोने से दृष्टि में सफेद शंख पीला दिखता है, परन्तु वह केवल दृष्टिविकार है, दृष्टिनाश नहीं । वैसे हो मोह की गहल से पर को स्व मानते हैं, परन्तु बह अपना नहीं है।

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