Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 158
________________ १५४ [ [विविलास जायगा । यह 'निरस्मिदानुगत समाधि' है । शब्द, अर्थ और ज्ञान - ऐसे तीनों भेद इस में भी जानना चाहिये । (११) विवेकख्याति समाधि :- विवेक का अर्थ है प्रकृति और पुरुष का विवेचन अर्थात् उनका पृथक्-पृथक भेद जानना, अन्य भेद मिट गए हैं। चैतन्यपुरुष के शुद्ध परिणतिरूप ज्ञान में दोनों का विवेक अर्थात् प्रतीति हुई है। चैतन्यपरिणतिरूप वस्तु, वस्तु के अनन्त गुणों का वेदन करनेवाली है, उत्पाद-व्यय करनेवाली है, षड्गुणी बुद्धिहानि उसका लक्षण है और वह वस्तु का बेदन करके आनन्द उत्पन्न करती है। जैसे समुद्र में तरंग उत्पन्न होती है, वह तरंग समुद्रभाव को जनाती है। वैसे ही यह चैतन्यपरिणति स्वरूप का ज्ञान कराती है । सकल सर्वस्व परिणति का अर्थ है प्रकृति । तथा पुरुष का अर्थ है परमात्मा, उससे प्रकृति उसी प्रकार उत्पन्न होती है - जैसे समुद्र से तरंग उत्पन्न होती है । पुरुष अनन्त गुणधाम चिदानन्द परमेश्वर है । उन दोनों का ज्ञान में जानपना हुआ, परन्तु प्रत्यक्ष नहीं हुआ, क्यों कि वेद्य-वेदक में प्रत्यक्ष होता है, केवलज्ञान में सम्पूर्ण प्रत्यक्ष नहीं होता है । लेकिन अभी तो साधक है, थोड़े ही समय में परमात्मा होगा । इसी को 'विवेकख्याति समाधि' कहते है । इसके भी शब्द, अर्थ और ज्ञानरूप तीन भेद जानना चाहिए।

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