Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 151
________________ विचारानुगत समाधि ] [ १४७ रूप इत्यादि अनेक प्रकार से हो सकता है। इसप्रकार द्रव्य का विचार करके उसकी प्रतीति में लीन होने से समाधि होती है। वह जीव प्रात्मा का अनुभव करता है, केवल विचार ही नहीं करता । ज्ञानगुण के प्रकाश को विचार कहते हैं । वह जब प्राप्त होता है, तब ही ध्यान होता है । पर्याय को स्वरूप में लीन करे, द्रव्य से गण में मन लगावे, गुण से पर्याय में लगावे अथवा और प्रकार से ध्येय का ध्यान करना अर्थान्तर कहलाता है । अथवा सामान्य-विशेष या भेद-अभेद से वस्तु में ध्यान धारण करके सिद्धि करना, प्रर्थ से अर्थान्तर कहलाता है। शब्द का मर्थ वचन है, वह दो प्रकार का है :-१. द्रव्यवचन और २. भाववचन; लेकिन यहां भाववचन से तात्पर्य है। भावश्रुत का अर्थ है - वस्तु के गुण में लीनता। भाववक्षन में गुणविचार के द्वारा विचार हो जाने पर और अधिक गुणविचार न करके स्थिरता द्वारा प्रानन्द होता है । शब्द के माध्यम से अन्तरंग में वस्तु को प्राप्त करने के लिए जो विचार होते हैं, उन्हें शब्दान्तर कहते हैं । में द्रव्य हूँ, ज्ञान हूँ', दर्शन हूँ, वीर्य हूँ - ऐसा उपयोग में जान करके 'अह अथात् स्वय अपने पद में द्रव्य-गुरण के

Loading...

Page Navigation
1 ... 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160