Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 153
________________ मस्मिदातुगत समाधि ] [ १४६ चेतना प्रकाश का आनन्द होता है । स्वयं का स्वयं द्वारा वेदन करने से अनुभव में जो सहज चिदानन्द स्वरूप का आनन्द होता है, उस प्रानन्द के सुख में समाधि का स्वरूप है। वस्तु का वेदन कर-करके ध्यान में आनन्द होता है । उस आनन्द की धारणा धारण करके जब स्थिर रहा जाता है, तब 'आनन्दानुगत समाधि' कही जाती है । जीव और कर्म का अनादि सम्बन्ध है | बंधन के कारण उनकी दशा एकत्वसो हो रही है। वह परस्पर अव्यापक होने पर भी ब्यापक के समान हो रही है। जब यह जोव भेदज्ञानबुद्धि से जीव और पुद्गल को पृथक्-पृथक् करके जानता है । नोकर्म तथा द्रव्यकर्म की वर्गणायें जड़ एवं मत्तिक हैं और मेरा जाननरूप ज्ञान उपयोगलक्षण के द्वारा पृथक्-पृथक् प्रतीति में जाने जाते हैं - ऐसा निर्मल ज्ञान होने पर जहाँ स्वरूप में मग्नता होती है तो स्वरूपमग्नता के होते ही आनन्द होता है। प्रानन्दानुगत समाधि के भी तीन भेद जानना चाहिये :आनन्द शब्द, प्रानन्द शब्द का मानन्द अर्थ तथा प्रानन्दशब्द और आनन्द अर्थ को जाननेवाला ज्ञान । जहाँ आनन्दानुगत समाधि है, वहाँ सुख का समूह है। (६) प्रस्मिवानुगतसमाषि:-परपद को अपना मानकर

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