Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 148
________________ १४४ 1 [चिद्विलास (३) वितानगत समाधि :- द्रव्यश्रुत से विचार करना वितर्कश्रुत है । अर्थ में मन लगाना भावभुत है अर्थात् वीतराग निर्विकल्प स्वसवेदन समरसीभाव से उत्पन्न प्रानन्द 'भावश्रुत' है । वही कहते हैं – भावच त का अर्थ भाव है । वहाँ द्रव्यश्र त का तात्पर्य यह है कि द्रव्यश्र त में जहां उपादेय वस्तु का वर्णन है, वहीं अनुपम प्रानंदधन चिदानन्द के अनन्त चैतन्यचिन्ह का अनुभव रसास्वाद बताया है । मन और इन्द्रियों के द्वारा चेतना विकार अनादि से प्रवृत्ति कर रहा था, उस शुभाशुभ विकार से छूटकर श्रुतविचार द्वारा ज्ञानादि उपयोगों की प्रवृत्ति से अपना स्वरूप पहिचाना । जैसे किसी दीपक के ऊपर चार परदे थे । उनमें से तीन परदे तो दूर हुये । प्रकाश के कारण पहिचाना कि दीपक है, अवश्य है, क्योंकि प्रकाश का अनुभव हो रहा है । लेकिन जब चौथा परदा दूर होगा, तब ही यह जीव कृतकृत्य परमात्मा होकर निर्वृत्त होगा अर्थात् सिद्धपद को प्राप्त करेगा। उसके पूर्व भी अनुभव के प्रकाश की जाति तो बही है, अन्य नहीं है। इसीप्रकार जब कषाय की तीन चौकड़ी नष्ट हुई, तब निजवेदन से चेतनाप्रकाश स्वजाति ज्योति का अनुभव हुआ 1 उससमय चेतनाप्रकाश का अनुभव ऐसा होता है कि

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