Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 128
________________ १२४ [ घिविलास (५१) नमस्कार :- उनकी पूजा और नमस्कार नहीं करना चाहिये । (५२) दान :- उनको दान नहीं देना चाहिये । (५३) अनुप्रयाण :- उनकी अधिक खान-पान द्वारा खातिरदारी नहीं करना चाहिये । (५४) पालाप :- उनसे बातचीत नहीं करना चाहिये। (५५) संलाप :- उनके गुण-दोषों (सुख-दुःख) की बात नहीं पूछना चाहिये और बार-बार भक्ति, एवं उनसे बातचीत नहीं करना चाहिये । अब सम्यक्त्व के अभङ्ग कारण लिखते हैं । समकिति इन भङ्ग (डिगने) के कारण होने पर भी डिगते नहीं, अतः इन्हें अभङ्गकारण कहते हैं । इनके छह भेद हैं : (५६) राजा, (५७) जनसमुदाय, (५८) बलवान, (५६) देव, (६०) पिता आदि बड़े पुरुष और (६१) माता – इन प्रभङ्गकारणों के सम्बन्ध में छह भयों को जानते रहें और निजधर्म तथा जैनधर्म का त्याग न करें। इसके अनन्तर सम्यक्त्व के छह स्थानों का वर्णन करते हैं : १. अस्तिजीव, २. नित्य, ३. कर्ता, ४. भोक्ता, ५. अस्तिध्र व और ६. उपाय ।

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