Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 140
________________ समाधि का स्वरूप विशेषविचारधर्म ग्राहकनय में 'चिन्तानिरोध' और 'एकाग्न' – ये दो भूमिकाएं धर्मध्यान और शुक्लध्यान की कारण है तथा समाधि को सिद्ध करती हैं। इसके प्रमाण में यह श्लोक है : "साम्यं स्वास्थ्यं समाधिश्च योगश्चिन्तानिरोधनम् । शुद्धोपयोग इत्येते भवन्येकार्थवाचकाः ॥"१ सामान्यार्थ :- साम्य, स्वास्थ्य, समाधि, योग, चिन्तानिरोध और शुद्धोपयोग - ये सब एकार्थवाचक है । चिन्तानिरोध और एकाग्रता से समाधि होती है राग आदि विकल्पों से रहित, स्वरूप में निर्विघ्न स्थिरता और वस्तुरस के प्रास्वाद के साथ, स्वसंवेदन-ज्ञान के द्वारा जो स्वरूप का अनुभव होता है, उसे 'समाधि' कहते हैं । कुछ लोग समाधि का कथन करते हुए कहते हैं :श्वास-उच्छवास वायु हैं, उसको अन्तर में भरे अर्थात् - १. पद्यनन्दि एकस्वसप्ततिका, गाथा ६४

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