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प्रात्मा की अनन्त शक्तियाँ नयों और प्रमाणों के द्वारा युक्तिपूर्वक मोक्ष का साधन होता है। जिससे अनन्त गुण शुद्ध होते हैं । सुख या मानन्द
अनन्त गुणों की उस शुद्धता का फल सुख है । जिसका वर्णन करते हैं :
बस्तु के देखने-जाननेरूप परिणमन से जो सुख या आनन्द होता है। वह अनुपम, अबाधित, अखण्डित, अनाकुल और स्वाधीन होता है । यह द्रव्य-गुण-पर्याय सभी का सर्वस्व है । जैसे सब उद्यम फल के बिना व्यर्थ होता है और फल के साथ कार्यकारी होता है, वैसे हो सुख कार्यकारी वस्तु है ।
इसप्रकार सुख का वर्णन पूर्ण हुआ।
१. समयसार के परिशिष्ट में प्राचार्य अमृतचन्द्रदेव ने ४७ शक्तियों का
निरूपण किया है । यहीं उनके आधार पर समी का तो नहीं, लेकिन कुछ शक्तियों का विस्तार से निरूपण किया गया है । प्राध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी ने उन ४७ गाक्तियों पर अध्यात्म रस से प्रोतप्रोत प्रवचन भी किये हैं, जो टेप प्रवचनों में उपलब्ध हैं । तथा उन टेप प्रवचनों के आधार पर लिखित 'प्रवचन रत्नाकर' के नाम से प्रकाशित ललानों में भी शीघ्र ही उपलब्ध हो सकेंगे। -सम्पावक