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परिणामशक्ति ]
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निज बस्तु के सकल भाव, पर (वस्तु) के अभाव से चिद्विलासमंडित, स्वरसभरित, त्याग-उपादानशून्य, सकल' कर्मों के प्रकर्ता,प्रभोक्ता, सम्पूर्ण कर्मों से मुक्त प्रात्मप्रदेश, सहजमग्न, परमूर्तिरहित अमूर्त रूप, षट्कारकरूप, द्रव्य क्षेत्रकाल-भावरूप, संज्ञा-संख्या-खक्षण-प्रयोजनादिरूप, नित्यादिस्वभावरूप, साधारणादि गुणरूप, अन्योन्य उपचारादिरूप अनन्त भेदों के अभेदरूप हैं। इनमें सामान्य-विशेष आदि अनन्त नयों और अनन्त विवक्षानों से अनन्त सप्तभंग सिद्ध करने चाहिये । ___ अनादि-अनन्त, अनादि-सान्त, सादि-सान्त और सादिअनन्त - ये चार भङ्ग सब गुणों में सिद्ध होते हैं। सर्वप्रथम ज्ञान में सिद्ध करते हैं :- १. वस्तु की अपेक्षा ज्ञान अनादि-अनन्त है, २. द्रव्य की अपेक्षा प्रनादि और पर्याय को अपेक्षा सान्त है, अतः ज्ञान प्रनादि सांत है, ३. पर्याय की अपेक्षा ज्ञान सादि-सान्त है तथा ४. पर्याय की अपेक्षा सादि और द्रव्य की अपेक्षा अनन्त है, अतः ज्ञान सादिअनन्त भी है।
इन भङ्गों को 'दर्शन' में भी इसी रीति से जानना चाहिए।
__ अब सत्ता में सिद्ध करते है :- १. द्रव्य की अपेक्षा सत्ता अनादि-अनन्त है, २. द्रव्य की अपेक्षा अनादि और