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परमात्मस्वरूप की प्राप्ति के उपाय
अब शिष्य प्रश्न करता है कि हे प्रभो ! ऐसे परमात्मा का स्वरूप कैसे प्राप्त किया जावे ? अतः उस शिष्य को परमात्मा प्राप्त कराने के निमित्त आगे कथन करते हैं ।
जो जीव अन्तरात्मा होकर परमात्मा का ध्यान करते हैं, वे अन्तरात्मा चौथे गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान तक । इनका वर्णन संक्षेप में करते हैं ।
चतुर्थ गुणस्थानवर्ती जीव श्री सर्वज्ञदेव द्वारा कहे गये वस्तु के स्वरूप का चिन्तन करता है, उसे सम्यक्त्व हुआ है । उस सम्यक्त्व के सड़सठ भेद हैं, उनका वर्णन करते हैं । प्रथम श्रद्धान के चार भेद हैं, जिनके नाम हैं :१. परमार्थ संस्तव, २ मुनितपरमार्थ, ३. यतिजनसेवा श्रौर ४. कुदृष्टिपरित्याग ।
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( १ ) परमार्थ संस्तव :- ज्ञाता सात तत्वों के स्वरूप का चिन्तन करता है । उपयोग चेतनालक्षण दर्शन ज्ञानरूप है । ऐसे उपयोग आदि अनन्त शक्तियों को धारण करने