Book Title: Chidvilas
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal
Publisher: Kundkund Kahan Digambar Jain Trust

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Page 67
________________ संग्रहनय एवं नगमनय ] विशेषरूप कहा जाता है । इसीप्रकार अनन्तगुरणों में अनन्त सामान्य-विशेष नयों के द्वारा भी सामान्य और विशेष दोनों भेद सिद्ध करना चाहिए । पर्यायसामान्य के ग्राहक नय से गुरणपर्याय, द्रव्यपर्याय, अर्थपर्याय, व्यञ्जनपर्याय, तथा एक गुण की अनंत विशेषपर्याों सभी को ग्रहण करना चाहिये । संग्रहनय सामान्य संग्रहनय से सब द्रव्य परस्पर अविरुद्ध कहे जाते हैं और विशेष संग्रहनय से सब जीवद्रव्य परस्पर अविरुद्ध कहे जाते हैं। नैगमनय नैगमनय तीन प्रकार का है :- भूतनगम, भाविनैगम, और वर्तमाननगम । आज दोपमालिका के दिन भगवान महावीर का मोक्ष हुमा - यह भूतनगम का उदाहरण है भावि तीर्थंकर को वर्तमान के रूप में मानना । भाविनेगम का उदाहरण है । तथा 'प्रोदनं पच्यते' अर्थात् भात पक रहा है – ऐसा कहना वर्तमाननैगम का उदाहरण है । नैगमनय दो प्रकार का भी होता है :- द्रव्यनगम और पर्यायनगम । द्रव्यनगम के दो भेद हैं :- शुद्धद्रव्यनगम और अशुद्ध द्रव्यनगम ।

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