Book Title: Chetna ka Vikas Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha Foundation View full book textPage 6
________________ 88888888888888888888888888888 मेरे प्रिय आत्मन्! अमृत की अभीप्सा आप सभी अमृत साधकों से मुझे आत्मिक प्रेम है। मात्र दो-तीन दिनों की अल्प-सूचना से भी यहाँ ध्यान के लिए जितना बड़ा समुदाय एकत्रित है यह इस बात का सबूत है कि आप के दिलों में ध्यान के लिए, ध्यान की ज्योति को आत्मसात् करने के लिए कितनी ललक है। मैं आपकी आत्म-भावनाओं का सम्मान करता हूँ और आप सबके भीतर बैठे प्रभु को प्रणाम करता हूँ। जब मैं यहाँ नहीं था तब कुछ समर्पित साधकों ने, अहोभाव जनित अमृत मूर्तियों ने ध्यान-सत्र जारी रखा। यह उनका प्रेम है, समर्पण है। अन्तरात्मा में उन सभी अमृत साधकों के प्रति प्यार भरा स्थान है। ध्यान-शिविर के उद्घाटन एवं ग्रन्थ विमोचन के अवसर पर आपने मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री एवं अन्य प्रबुद्ध तथा वरिष्ठ लोगों को आमन्त्रित किया और एक प्रतिष्ठापूर्ण समारोह सम्पन्न किया। निलयम् (श्री चन्द्रप्रभ ध्यान निलयम) की इससे प्रतिष्ठा बढ़ी है, उससे भी ज्यादा अर्थपूर्ण यह है कि आप जैसे चेतना का विकास : श्री चन्द्रप्रभ/१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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