Book Title: Chanakya Sutrani
Author(s): Ramavatar Vidyabhaskar
Publisher: Swadhyaya Mandal Pardi

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Page 8
________________ भूमिका हितके बन्धनों में माबद्ध रह सकता है। ग्रामों के इस बन्धनका टूटना या टूटने देना, शिथिल होजाना या शिथिल हो जाने देना अस्वाभाविक उधारी स्थिति है। ग्रामों में मिन भित्र जातियों और सम्प्रदायोंके लोगों का कौटुम्बिक सम्बन्धों जैसा परस्पर पवित्र घनिष्ट सम्बन्ध होता है। इसीलिये प्रामवासी लोग एक दूसरेको दादा-दादी चाचा-चाची ताऊ-ताई बहनभाई भादि कौटुम्बिक उपाधियोंसे ही सम्बोधित करते हैं । यह सामाजि. कता शहरों में कहां है ? ग्रामवासी लोग माकस्मिक विपत्तियों में नगर. वासियों के समान मांख बन्द करके न बैठे रहकर परस्परके सहायक बन. नेके लिये एकत्रित होजाते हैं। ग्रामवासी लोग एक दूसरेका विपद्वारण करने में अपने प्राण तक होम देते हैं । यही तो ग्रामों की सामाजिकता है । संकेतमात्र पर्याप्त है । नगरवाली सामाजिक बन्धनसे पृथक रहते हैं। वे केवल व्यक्तिगत क्षुद स्वार्योसे पूर्णरूपसे अभिभूत रहते हैं। उनके हृदयों में समाजहिताकांक्षा नामवाली कोई स्थिति नहीं होती। इनकी समाजहिताकांक्षा इनके नेता बन जाने तक सीमित रहती है। सामाजिक हितों की चिन्ता न रखना मानवका मसाधारण अपराध है। इस रूपमें अपराध है कि सामाजिक हितों की चिन्ता न रखना ही तो समाजका अहितचिन्तक शत्रु बन जाना है। समाजकी उपेक्षा ही समाजसे शत्रुता है। हितकर कर्तग्यसे विमुख रहना ही सो महित करना है । नगरवासी लोग समाजचिन्ताहीन होने के रूपमें समाज के अहितचिन्तक शत्रु होते हैं । आज जो भारतमें राजशकि हथियाने वाले दलोंकी बाढ आई है, वह मिथ्या महत्वाकांक्षी उज्ज्वल वेषी ( सफेद पोश ) नगरवासियों के ही तो मनकी उपज है। राजशक्ति हथियाने वाले दलोंकी बाढ नगरवासियों की असामाजिक मनोवृत्तिका ही तो परिणाम है । शहरी लोगों की असामाजिक 'मनोवृत्तिने ही राजशक्ति हथियाने के इच्छुक दलों की सृष्टि की है। यही कारण है कि समस्त राजनीतिक संस्थाएं नगरों में से ही उपजनी हैं और

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