Book Title: Bruhad Dharana Yantra
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Charitra Smarak Granthmala
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श्रीबृहद् धारणायंत्र।
द्वार :
भादयोनि तारागण नाडिवेधाः यूजिस्तु राशे युतिमध्यदूरौ
.
नामाणि:
अन्तरा::
वश्यंच वर्णः पतिजेक्यमै यो प्राया यो वर्ग विशोपकाश्व अश्विनी भरणी चैव कृतिका रोहिणी मृगः आर्दा पूनर्वसू पुष्य स्ततोऽश्लेषा ततो मघा ८ पूर्वा फाल्गुनी तस्माच्चै- वोसराफाल्गुनी कर: चित्रा स्वाति विशाखानु-- राधा ज्येष्ठा मूलं तथा पूर्वाषाढोत्तराषाढा ऽभिच्छवणं धनिष्ठिका शतं पूर्वोत्तराभानी रेवती भगण: स्मृतः अश्विनीचुचेवोलास्यात् लोलुलेलो भरण्यथ कृतिकास्याद् आइउप रोहिणी ओववियु च मृगाशिर्ष वेवोकाकि आद्रा कुघंङछ मता पूनर्वसू केकोहाही हु हे हो डा वपुष्यभं १२ अश्लेषाडिडुडेडोस्यात् ममिमुमे मघामवेत् भवेत् पु० फा० मोटटिटू उ• फा० टेटोपपि तथा १३ हस्तभंस्यात् पुषणंठं चित्रा पेपोररि भवेत् स्याति रुरेरोत प्रोक्तं तितुतेतो विशाखभं १४ अनुराधा ननिनुने ज्येष्ठा नोययियु भवेत् येयोभभि मूलमुक्तं पूर्वाषाढा भूधंफढं अन्याऽऽषाढा भेभोजाजि जुजेजोखा तथाभिजीत् श्रयणंखिखुखेखोस्यात् धनिष्ठास्याद् गगिगुगे शततारा गोससीसु भाद्र सेसोददि सकृत् अन्यभाद्र दुषंझथं देदोचचि वरेवती एकस्वरेदशग्राहा औदन्ता नही ऋलुको ज-शयो: क-क्षयोः रि-रोः ऐक्यं स्यात् हस्वदीर्घयोः १८

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