Book Title: Bruhad Dharana Yantra
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

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Page 21
________________ श्रीबृहद् धारणायंत्र। चतुर्थाष्टममकोग्रामो यत्रउत्पद्यते अर्थ: द्वादशो यदिवा भवेत् तत्रैवार्थो विलीयते ॥२॥ काकीणी : द्विकृत: प्रथमवर्गीकः अन्यवर्गेण पूरितः अष्टभक्तेन शेषांकां याचते कांकीणी परात् ६३ एवं परस्परं कृत्वा शोधनीया ही कांकीणी स्वनामाक्षर वर्गाच्च ग्रामाद्याक्षर वर्गत: कांकीणीयंत्रः साधक | . - ... ... .. .-..- ...... साधक अ क अ । न I । य । श क दे०१ च दे०२ ट ले ५ त प ले०४ | ले०३ । o d o t ( * the civ e दे २ दे ३ to i दे०१ له ° * * ले ले०१ ले २ ले०३ to of a de no te to o to to AE to to ले०२ * is a totoo दे०५ ले * * ले०२ ले०३ ले०२ वर्णावश्यंचताराच মগ্ন ছিকুঞ্জে योने: राशिवश्यमधिकं श्रीमद्वारित्रविजय-~राश्यादि धारणायंत्रे योनिश्चवर्गमेलक नाडीचैते गुणाधिकाः ६५ इति कस्यचिन्मते शिष्य दर्शन गुंफितः अध्यायः प्रथम इति ६६

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