Book Title: Bruhad Dharana Yantra
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Charitra Smarak Granthmala

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Page 107
________________ श्रीबृहद् धारणायंत्र। बे ढींचणनी वच्छ आई सूत्र घेवू अने सूत्रथी नाभि सुधी एक कषिका रामवी ए रीते करतां नाभिथी सुत्र सुधी अढार आंगळनु प्रमाण जोदए । प्रतिमानु ऊंचाइनु प्रमाण नव ताल जाणवु बार आंगुळनो एक ताळ थाय के अहीं आंगळां कंवानां न लेतां प्रतिमानां लेवां। पूजा वगर घणो काळ एमने एम पडेली प्रतिमा ज्यां त्यांथी ग्रहण करवी नहीं। प्रासादना चोथा भाग जेटलो प्रतिमा करवी पण उत्तम लाभ प्राप्तिने अर्थे ते चोथा भागमा एक आंगुल ओछी अथवा वधारे करवी । ___ प्रसादना चोथा भागना दश भाग करवा भने ते दशिमो एक भाग प्रासादना चोथा भागमा ओछो करी, अथवा तेमां एक दशिमो भाग उमेरी, तेटला प्रमाणनी प्रतिमा कारिगरोए करवी। ___ सर्वे धातुओनो, रत्ननी, स्फटिकनी अथवा प्रवाळनी प्रतिमा होय तो त्यां प्रतिमामा प्रमाण उपर प्रसादनु प्रमाण न लेतां इच्छा माफक लेवू । गभाराना अर्धभागना पांच भाग भित्तिथी करवा तेमा प्रथम भागमा यक्षादिकनो स्थापना करतो, वोजा भागमा सर्वे देवीओनी स्थापना करवी श्रीजा भागमां जिन, सूर्य, कार्तिकेय तथा कृष्ण एमनी प्रतिमा स्थापन करवी, चोथा भागमा ब्रह्मानी प्रतिमा अने पांचमां भागमां शिवलिंगनी प्रतिमा राखवी। सामाद्वारनी शाखाना निचेयी आठ भाग करवा. तेलां जे माठमो भाग पधा करतां उपर आवेलो ते मूकी देवो भने तेनी निचेनो जे सातमो भाग तेना पाछा निचेथी सात भाग करया तथा ते सातमांना छ भाग मूकी देवा उपरनो जे सातमो भाग रह्यो तेमां गजांश ( अष्टमांश ) संभवे छे. ते गजांशने विषे कारीगरोए प्रासादनी अंदर रहेली प्रतिमा नीष्टि राखषी। स्पष्ट दिशा ज्ञान करवानारो, अ-गोळ, चोखंडी, त्रण दिवसमां धान्य उगावनारी तथा पूर्व-उत्तर-इशान दिशामां उतरतो भूमि मंदिर माटे श्रेष्ठ छे । राफडा-पोल-फाट के शल्यवाळी भूमि अशुभ । खानी काची माटीना कोडीयानां बार दिवा करवा जे दिशानो दियो घणी पार प्रकाशे ते दिशानी ते भूमि सारी। भुमि मापता दोरीत्रुटे तो धणीनु मृत्यु, ठोकतां खोलो बळी जाय तो रोग मडो पढे त्रुटे तो स्मृतिमाश।

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