Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 4
________________ PROMORRUPARORDEmmsapanSAAWANTERVERY प्रस्तावना. Gonporenopranoranormonetoranorancoronapronpronpravarodpranaoraneopranorans ३ इस दन्तकथाके कथनानुसार इन्हें केशवदासजीक समकालीन ही कहना चाहिये , परन्तु इतिहास प्रकाशकोंने केशवदासजीका शरीरपात विक्रमसंवत् १६७० में होना लिखा है. इसकारण इस दन्तकथापर विश्रास नहिं किया जा सका. कदाचिन् 'रसिकप्रिया इनके देखने में पीछेसे आई हो और फिर यह छंद बनाया हो सी भी संभव हो सका है. है यह ब्रह्मविलास ग्रन्थ यथार्थमें उनकी विक्रम संवत् १५३१ से १७५५ तककी कविताका संग्रह है जो कि सांसारिक कार्योस निराकुलित होनेपर समय समय पर बनाया गया है. किन्तु द्रव्यसंग्रह आदिमें इनके मित्र मानसिंहजीकी कविताका भी प्रवेश है. यद्यपि यह कविता इतनी उत्तम नहीं है. जो इनकी कविताके शामिल की जाय ती भी कविवरने अपने मित्रके उत्साहवर्द्धनार्थ है इस ग्रन्थमें स्थानप्रदानकरके यथार्थ मित्रता वा सज्जनताका परिचय दिया है। ___ भगवतीदासजी संस्कृत और हिंदीके ज्ञाता होनेके अतिरिक फारसी, गुजराती मारवाड़ी वंगला आदि भापाका भी ज्ञान रखते थे, ऐसा अनुमान उनकी कवितामें प्र. योजित शब्दोंसे तथा कोई २ कविता खास गुजराती फारसीमें करनेसे स्पष्टतया हो सका है. तथा ओसवाल जातिकी उत्पत्ति मारवाद देशसे होनेके कारण क. विवर भगवतीदासजीकी मातृभाषा मारवाड़ी होनाभी संभव है. क्योंकि इनकी कवितामें यत्र तत्र मारवाड़ी भाषाके (जो कि प्रायः प्राकृत भापाके शब्दोंसे मुशोभित है) शब्दोंका प्रयोग अधिक पाया जाता है. ___ इस ग्रन्थके शोधनेका भार ग्रन्थप्रकाशक पं० पन्नालालजीने मुझ अल्पज्ञपर डाला था. यद्यपि मैं काव्य विषयका इतना जानकार नहीं हूं जो ऐसे २ अपूर्वभावविशिष्ट प्रन्योंका संशोधन कर सकू. परन्तु उक्त प्रकाशकजीकी आज्ञाका उल्लंघन करनेको ॐ असमर्थ होकर मुझसे जहांतक बना है परिश्रम करनेमें त्रुटि नहीं की है. फिर भी संभव ४ है कि प्रमादवशतः अनेक अशुद्धियां रहगई होंगी.आशा है कि उन्हें पाठक महाशय सुधारके पढ़नेकी कृपा करेंगे. ___ इस ग्रन्थमे परमात्मशतक और कुछ चित्रपदकविता जो पूर्वार्द्धमेथी और जिसे साथ प्रकाशित करनेकी आवश्यकता समझअनवकाशवशतःरख छोडी थी वह हमने कठिन २दोहोंके अर्थसे यथाशक्ति विभूषितकर अन्तमें लगाई है. आशा है कि पाठक महाशय 8 इस क्रमभंग करनेके अपराधको क्षमा करेंगे. इसके अतिरिक्त इस ग्रंथमें य, व, श, प, स, ख, क्ष, च्छ अनुसार और सानुनासिक संबंधी रदवदलकी त्रुटियां भी विशेष रही S होंगी सो पाठक महाशय मुझे अल्पज्ञ वालक जान क्षमा करेंगे. NwARWAROOPORNOONPROMPREMPORAN GANDUNSTNIS NAIRAUKSISSA VISAG: VISSVERS

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