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बिखरे मोती चली गई, टेकरी को तीर्थ बना देनेवाली महानिधि चली गई; पर यह सजग प्रहरी आज भी वहीं अपनी धुनी रमाये बैठा है, पहरा दे रहा है; वहाँ से हिल भी नहीं रहा है।
उनके रौबीले व्यक्तित्व, सतेज दृष्टि एवं दबंग आवाज के सामने किसी को सिर उठाने की हिम्मत नहीं होती। शताधिक झुर्रियों से आवेष्ठित चेहरा, विशाल डील-डौल एवं गजगंभीर चाल को देखकर सहज अनुमान किया जा सकता है कि वे अपनी जवानी के दिनों में कैसे रहे होंगे?
प्रमाद, प्रमाद तो उनके पास भी नहीं फटकता। वे आज भी दिन में तीन बार गुरुदेवश्री के टेप प्रवचनों, गुरुदेवश्री के आवास में उपस्थित होते हैं; जिसप्रकार कि वे गुरुदेवश्री की उपस्थिति में उपस्थित होते थे।
गणेश चतुर्थी को जन्मे इस सोनगढ़ के गणेश की हम क्या-क्या विशेषताएँ गिनाएँ? पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी में उनकी अटूट आस्था एवं विश्वास था और आज भी है। - यही कारण है कि वे उनकी प्रत्येक बात को शिरोधार्य करते, शिर नवाकर स्वीकार करते। पू. गुरुदेवश्री को भी उनकी आस्था, बुद्धि, व्यवस्था-शक्ति एवं कर्मठता पर पूरा विश्वास था। यही कारण है कि वे ताश्विक प्रश्नों का उत्तर तो स्वयं देते थे, पर जब कोई व्यक्ति उनसे व्यवस्था संबंधी बात कहता तो छूटते ही उत्तर देते कि 'रामजी भाई जानें।
पूज्य गुरुदेवश्री ने उन पर जो विश्वास व्यक्त किया है, उसे उन्होंने आज . तक निभाया है और आजीवन निभाते भी रहेंगे। जब नन्दीश्वर जिनालय और वचनामृत भवन के निर्माण की बात चली तो उन्होंने दृढ़ता से कहा कि जिसकी नींव गुरुदेवश्री के समक्ष पड़ गई, वह तो बन के रहेगा। अब तो उन्होंने हर विवाद के मुद्दे को सुलझाने का एक फार्मूला ही बना लिया है कि जो काम . गुरुदेवश्री की उपस्थिति में जैसा चलता था, वैसा ही अब भी चलना चाहिए। ___ मात्र दो-तीन माह पहले की ही बात है कि बम्बई शिविर के अवसर पर ६-५-८२ को जब मैं और श्री नेमीचंदजी पाटनी उनसे मिलने गये तथा हिन्दी आत्मधर्म के प्रकाशन आदि के संबंध में अपनी समस्यायें उनके सामने रखीं,