Book Title: Bikhare Moti
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 220
________________ विवेके हि न रौद्रता : विवेकी कभी क्रुद्ध नहीं होता वर्तमान भारतीय भाषाओं की जननी देववाणी अर्थात् संस्कृत भाषा में हमारे पूर्वजों के अनुभव निबद्ध हैं, हमारी सभ्यता और संस्कृति की निधि निहित है और हमारा पौराणिक इतिहास सुरक्षित है। प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र संस्कृत भाषा का एक ऐसा महाकाव्य है, जिसमें त्रेषठ शलाका के महापुरुषों का चरित्र विस्तार से वर्णन किया गया है। जैन मान्यतानुसार २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवती, ९ बलभद्र, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण - इन ६३ महापुरुषों को शलाका पुरुष कहते हैं । शलाका पुरुष अर्थात् श्रेष्ठ पुरुष । उक्त ६३ शलाका पुरुषों का जीवन चरित्र ही समस्त जैन पुराणों का एकमात्र वर्ण्य विषय रहता है। आचार्य हेमचन्द्र का यह पुराण एक तरह से समस्त जैन पुराणों को अपने समेट लेने का प्रयास है। इसीप्रकार का एक और महान ग्रन्थ प्रसिद्ध आचार्य जिनसेन का महापुराण भी है। यद्यपि त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र में आचार्य हेमचन्द्र का उद्देश्य उसमें यथास्थान प्रसंगानुसार अनेक लौकिक और पारलौकिक विषयों पर महत्त्वपूर्ण विचार प्रगट हुए हैं। यथास्थान सुन्दर-सुन्दर सूक्तियाँ भी पिरो दी गई हैं, जिनमें बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त और जीवनोपयोगी नीतियाँ सहज ही प्रतिपादित हो गई हैं। उनमें एक महत्त्वपूर्ण सूक्ति यह भी है – 'विवेके हि न रौद्रता ।' जिसका अर्थ है विवेक प्राप्त होने पर रौद्र भाव नहीं रहता । भाव यह है कि विवेकी कभी क्रुद्ध नहीं होता । प्रत्येक संसारी प्राणी में क्रोधादि मनोविकार पाये जाते हैं। वे मनोविकार स्वयं ही दुःखस्वरूप हैं और दुःख के कारण भी हैं । यद्यपि क्रोधादि विकारों

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