Book Title: Bikhare Moti
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 186
________________ 178 बिखरे मोती भी नहीं सकते। यह भी हमारे लिए कोई बहुत बढ़िया बात नहीं है कि अभी हाल दस लाख रुपया इकट्ठे करके एक नये मंदिर की नींव यहाँ डाल जाये और इतिहास में लिखा जाय कि यहाँ पर डॉ. भारिल्ल आये थे, तब यह मंदिर बना था। हम यह नहीं चाहते हैं । उन्होंने कहा कि आप हनुमान बन जाये। भैय्या ? हममें वह ताकत कहाँ है, हममें वह शक्ति कहाँ है? उन्होंने तो लंका में आग लगाई थी, वह ताकत हममें कहाँ है? उनमें वह ताकत थी और उनके सामने संहार करने के लिए राक्षस थे। हमारे सामने राक्षस कहाँ है? ये तो हमारे साधर्मी भाई हैं। यहाँ आग लगाकर तो अपने ही घर को जलाने की बात है । एक बूढ़ी माँ थी और उसके दो बेटे थे। पिताजी का स्वर्गवास हो गया था। इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि माताजी की सेवा दोनों ही मिलकर करेंगे। दोनों ने माँ को आधा-आधा बाँट लिया। पिताजी होते तो एक भाई पिताजी को ले लेता और एक माताजी को । अकेली माताजी थी, तो एक इस . पैर को दबाता, नहलाता, धुलाता और दूसरा दूसरे पैर को दबाता, नहलाता धुलाता ऐसे दोनों सेवा करते थे । - एक दिन बड़ा भाई आया, उसने अपना पैर धोया और वह गीला था तो सोचा की इसे जमीन पर रखूँगा तो मिट्टी लग जायेगी । उसने उसे दूसरे पैर पर रख दिया। सोचा थोड़ी देर में सूख जायेगा तो नीचे रख दूँगा। दूसरा भाई आया और कहने लगा कि मेरा पैर गंदा है इसका मतलब यह थोड़े ही है कि तू अपना पैर मेरे पैर पर रखे। वह अन्दर से मूसल ले आया और उसका पैर तोड़ दिया, टाँग तोड़ दी। दूसरे को भी गुस्सा आया। उसने दूसरी टाँग तोड़ दी। अम्मा की दोनों टाँगें टूट गयीं । -- ऐसे ही जिनवाणी हमारी माता है। जिनवाणी माता को हम बाँट ले। कुछ आप हटाये, कुछ आप जलायें । यह कहकर कि इनके यहाँ से प्रकाशित है। इसलिए कुछ हम हटायें; क्योंकि कुछ जगह हमारा भी तो कब्जा है। कुछ मंदिरों में हमारा भी तो बहुमत है ।

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