Book Title: Bikhare Moti
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 195
________________ आचार्य कुंदकुंद और दिगम्बर जैन समाज की एकता 187 हैं कि आप मुनिराजों को नहीं मानते, उनका अपमान करते हैं, उनकी निन्दा करते हैं। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा - "अपमान तो हम किसी का भी नहीं करते, निन्दा भी किसी की नहीं करते, फिर मुनिराजों की निन्दा करने का तो प्रश्न ही कहाँ उठता है? ___ शुद्धोपयोग की भूमिका में झूलते हुए नग्न दिगम्बर परमपूज्य मुनिराज तो एक प्रकार से चलते-फिरते सिद्ध हैं, हम तो उनके दासानुदास हैं। उनकी चरणरज अपने मस्तक पर धारण कर कौन दिगम्बर जैन अपने को धन्य नहीं मानेगा?'' ___ कहते-कहते जब वे भावमग्न हो गये, तब मैंने उनकी मग्नता भग्न करते हुए कहा - "आजकल कुछ लोगों द्वारा यह प्रचार बहुत जोरों से किया जा रहा है कि आप मुनि विरोधी हैं।" ___ तब वे अत्यन्त गंभीर हो गये और बोले - "मुनिराज तो संवर और निर्जरा के मूर्तिमान स्वरूप हैं। मुनिविरोध का अर्थ है – संवर और निर्जरा तत्त्व की अस्वीकृति । जो सात तत्त्वों को भी न माने वह कैसा जैनी? हमें तो उनके स्मरण मात्र से रोमांच हो जाता है। "णमोलोए सव्व साहूणं" के रूप में हम तो सभी त्रिकालवर्ती मुनिराजों को प्रतिदिन सैकड़ों बार नमस्कार करते हैं। प्रश्न : समाज वैसे ही अनेक पंथों में बंटा हुआ है, जैसे - तेरापंथ, बीसपंथ, तारणपंथ, गुमानपंथ आदि। फिर अब आप और क्यों नया पंथ चला रहे हैं? .. उत्तर : हमने तो कोई नया पंथ नहीं चलाया और न चला ही रहे हैं । हमारा तो पंथ एक ही है और वह है आचार्य कुन्दकुन्द का "सत्यपंथ निर्ग्रन्थ दिगम्बर"। जो कुन्दकुन्दाम्नाय का मूल दिगम्बर मार्ग है, हमने तो उसी को बुद्धिपूर्वक स्वीकार किया है, हम तो उसी पर चल रहे हैं, हमने कोई नया मार्ग नहीं पकड़ा। अनादिनिधन जो मूल मार्ग है, वही हमारा मार्ग है। जिस पथ पर परमपूज्य आचार्य कुन्दकुन्द, अमृतचन्द्र, भूतबलि, पुष्पदन्त, नेमिचन्द्र चले, पण्डित बनारसीदासजी और टोडरमलजी चले, उसी पर हम चल रहे हैं, वही हमारा पंथ है।

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