Book Title: Bikhare Moti
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 194
________________ 186 बिखरे मोती दिगम्बरों ने भी उनके इस कुन्दकुन्दीय आध्यात्मिक आन्दोलन से भरपूर लाभ उठाया है। इसप्रकार आज लगभग चार लाख लोग ऐसे हैं, जो प्रत्यक्ष या परोक्षरूप में उनसे प्रभावित हैं। ___ आज न तो कानजी स्वामी ही हैं और न वे लोग, जिन्होंने उनके साथ दिगम्बर धर्म स्वीकार किया था। आज तो उनके अनुयायियों में ऐसे लोग ही अधिक हैं, जिनका जन्म ही तब हुआ था, जब उनके माँ-बाप दिगम्बर धर्म स्वीकार कर चुके थे; इसप्रकार वे भी एकप्रकार से मूल दिगम्बर ही हैं । अतः मूल दिगम्बर और नये दिगम्बर इसप्रकार के भेद का अब कोई अर्थ नहीं रह गया है। जिन लोगों को आचार्य कुन्दकुन्द की वाणी का रहस्य आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजीस्वामी के माध्यम से प्राप्त हुआ है, उन लोगों पर आज मुनिविरोधी होने का आरोप लगाया जा रहा है। इसीप्रकार का आरोप स्वामीजी पर भी लगाया गया था। इस बात की सच्चाई जानने के लिए और उसे समाज के सामने रखने के लिए मैंने स्वयं स्वामीजी से कुछ इन्टरव्यू लिये थे और उनके ही पत्र आत्मधर्म में प्रकाशित भी किये थे, जिनके कुछ महत्वपूर्ण अंश इसप्रकार हैं - प्रश्न : आपको लोग गुरुदेव कहते हैं। क्या आप साधु हैं? गुरु तो साधु को कहते हैं। उत्तर : साधु तो नग्न दिगम्बर छठवें-सातवें गुणस्थान की भूमिका में झूलते हुए भावलिंगी वीतरागी सन्त ही होते हैं। हम तो सामान्य श्रावक हैं, साधु नहीं। हम तो साधुओं के दासानुदास हैं। अहा! वीतरागी संत कुन्दकुन्दाचार्य, अमृतचन्द्र आदि मुनिवरों के स्मरण मात्र से हमारा रोमांच हो जाता है। "मुनिराज तो चलते-फिरते सिद्ध हैं, हम तो उनके दासानुदास हैं" उक्त शब्द पूज्य स्वामीजी ने तब कहे, जब उनसे पूछा गया कि कुछ लोग कहते .

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