Book Title: Bikhare Moti
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 214
________________ ३ दुःखनिवृत्ति और सुखप्राप्ति का सहज उपाय ( श्री कानजी स्वामी अभिनन्दन ग्रन्थ, मई १९६४ में से ) दुःख का कारण क्या है, यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। कुछ मनीषी कर्मों (द्रव्यकर्मों) को दुःख का कारण मानते हैं और कुछ मनीषी जीव और कर्मों के संयोग को । इसप्रकार आज तक इस जीव ने पर पदार्थों को ही दुःख का कारण माना है; किन्तु अपने अज्ञान के कारण परलक्ष्य से उत्पन्न होनेवाले संयोगीभाव यथार्थ में दुःख परम्परा के बीज हैं, इस ओर इसका लक्ष्य नहीं गया। इसप्रकार जब इसने दुःख के यथार्थ कारण को नहीं जाना तो फिर अनन्त आनन्द का यथार्थ कारण जो आत्मस्वभाव का आलम्बन, उस पर इसकी दृष्टि जाना कैसे संभव है? संसारी जीव संयोग में ही अपने विकल्पानुसार अनुकूल-प्रतिकूल भेद कर अनुकूल संयोग को शुभकर्मों के उदय में प्राप्त हुए इष्ट जैसे प्रतीत होनेवाले स्त्री, पुत्र, कुटुम्ब, धन, धान्य, शरीर और नीरोगता आदि को सुखदायक और प्रतिकूल संयोग को अशुभ कर्मों के उदय में प्राप्त हुए अनिष्ट जैसे प्रतीत होनेवाले स्त्री, पुत्र, कुटुम्ब, शरीर, सरोगता आदि को दुखदायक मानता आ रहा है। असंयोगी त्रिकाली आत्मस्वभाव की ओर इसका लक्ष्य एक बार भी नहीं गया। वास्तव में देखा जाय तो न तो परपदार्थ ही सुख-दुःख के कारण हैं और न परपदार्थों का संयोग ही, क्योंकि इस लोक में जहाँ इस जीव का वहीं अन्य अनंत पदार्थों का भी अस्तित्व है। ऐसी अवस्था में यदि परपदार्थ या उनका संयोग सुख-दुःख के कारण माने जाँय तो इसके दुःख का कभी भी अन्त होना सम्भव नहीं है । और संसार में जिसे यह जीव सुख मानता है,

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