Book Title: Bikhare Moti
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 190
________________ 182 बिखरे मोती विराजमान होगी, वहीं वह पैसा दिया जायेगा। ऐसी कोई बात नहीं है कि हमको अलग करना है। लेकिन जबतक हमको अलग रहना पड़ेगा, तबतक उस व्यवस्था में जितना भी खर्च होगा, इसी में से होगा। ___ यदि आपको स्वाध्याय आदि की कोई तकलीफ आये तो आप जितने भी रुपये महीने के हिसाब से जो भी जगह मिले, वह किराये से ले लीजिए, मैं तो आपको अपनी तरफ से, संस्थाओं की तरफ से, ये आश्वासन देता हूँ कि उसका ५०% किराया आपको हम देंगे। यदि आप २०००/- रुपये महीने की जगह लेंगे तो १०००/- रुपये हम देंगे। उसके बाद भी अपनी जगह बनाने की आवश्यकता पड़ी तो उसके लिए भी हमसे जो बनेगा, आपका हाथ हम अवश्य बटायेंगे। मैं चाहता हूँ कि यहाँ कभी आवश्यकता पड़े ही नहीं। कल सब लोग सोचकर आयें, मैंने २४ घण्टे पहले आपको सूचना देनी जरूरी समझी। भाई ! उपवास को व्यक्तिगत ही रहने दो, सामूहिक रूप न दें। हमको कोई आन्दोलन खड़ा नहीं करना है। हमको तो प्रायश्चित्त करना है। अपने दुःख का शमन करना है। हमारे सब लोगों ने आज जिससे जैसा बना है, वैसा किया ही है। कषाय की बात भी बिल्कुल भी अपने चित में न लायें। जैसा उत्साह का वातारण अभी आपने अन्य बोलियों में बताया है, वैसा कल आपको जिनवाणी के प्रति बताना है । वास्तव में आपकी जो भक्ति कुन्दकुन्द के प्रति है, उन्हीं कुन्दकुन्द की यह वाणी है, इसमें आपका उत्साह देखने को मिलेगा; - ऐसा मेरा पूरा विश्वास है । एक दिन फिर हम जल्दी से जल्दी नागपुर में आयेंगे और अखण्ड समाज के एक सामूहिक आमंत्रण पर आयेंगे। ऐसी मेरी भावना है। डॉ. भारिल्ल के इस व्याख्यान का जादू जैसा असर हुआ और वातावरण एकदम शान्त हो गया। जब बोलियाँ लगी तो सबसे पहली बोली - डॉ. भारिल्ल ने ही ली थी। फिर तो बोलियों का तांता लग गया। २५ के स्थान पर ५० बोलियाँ लगानी पड़ी। कालान्तर में मन्दिर भी बनाना पड़ा और वह मन्दिर भी दर्शनीय बन पड़ा है।

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