Book Title: Bikhare Moti
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 187
________________ गोली का जवाब गाली से भी नहीं 179 आखिर हम कोई ऐसे ही तो हैं नहीं। हम तुम्हारी निकालने लग जाये तो इससे जिनवाणी माता की दोनों टाँगें टूटने के अलावा और क्या होगा ? मेरा तो कहना है कि गोली का जवाब गोली से देने की बात तो बहुत दूर, हमें तो गोली का जवाब गाली से भी नहीं देना है। ऐसा पाप हमसे तो होगा नहीं । ( सभा में से एक आदमी चिल्लाया, हाथ में कंगन पहन लो ) अरे पहन लेंगे, क्या दिक्कत है। भाई ! तुम्हारे दुःख को हम जानते हैं। तुम क्या समझते हो कि हमें खुशी हो रही है ? अरे अभी तो दिक्कत यह है कि हमें अभी तो हमारे युवकों को ही शान्त करना पड़ेगा । आधी शक्ति इन युवकों को शान्त करने में लगेगी; क्योंकि जिस कुएँ का पानी आप पीते हो, उसी कुएँ का पानी हमारे बेटे भी पीते हैं । कुँआ अलग-अलग होता तो बात अलग थी। जिस मिट्टी में आप पले पुसे हो, उसी मिट्टी में ये पैदा हुये हैं, अब इनका क्या करें! यह तो अध्यात्म का प्रताप है कि हमारी इतनी बात सुन करके रह जाते हैं । देखो! यह हमारा विद्यार्थी है और हमको बोलता है कंगन पहन लो ! चुड़ियाँ पहन लो !! क्या करें? हम सब जानते हैं कि इनके दिल में कितना दर्द है, वह दर्द बोल रहा है। यह तो सुबह शाम उठकर दिन में दो बार पैर पड़ने वालों में से है। कोई अविनयी लड़का नहीं है । यह तो बाल ब्रह्मचारी है। इसने तो अपना सारा जीवन इस काम के लिए समर्पित किया है। घंटे भर से बहुत उबल रहा है। मैंने अपने चार हनुमानों को भेजा है, इसे शान्त करने के लिए; लेकिन अभी तक शान्त नहीं हुआ है । नहीं, भाई ! यह रास्ता नहीं है। मैं आपसे कहता हूँ कि हम भी उसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य कर रहे हैं। निश्चित रूप से यहाँ का जागरुक समाज इस बात पर गम्भीरता से विचार करेगा । आप चिन्ता मत करो। हम नागपुर से तभी जायेंगे, जब इस जिनवाणी माता की सुन्दरतम व्यवस्था हो जायेगी ज्यादा दुःखी होने की रंचमात्र आवश्यकता नहीं है । आपसे मेरा यह विनम्र अनुरोध है कि आप शान्ति बनाए रखें।

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