Book Title: Bikhare Moti
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 161
________________ एक ही रास्ता 153 अहित होने वाला है । जब कोई अजैन व्यक्ति जैनधर्म में रस लेने लगता है, तो उसे जैन समाज का वात्सल्य सहज ही प्राप्त हो जाता है। उसे जन्मजात जैनों से अधिक मान-सम्मान मिलने लगता है। इस स्थिति और वर्तमान परिस्थिति का लाभ उठाकर वे अजैन बन्धु आज सोनगढ़ की रीति-नीति के प्रवक्ता बन बैठे हैं। वे न तो पूर्णत: दिगम्बर परम्पराओं से ही परिचित हैं और न श्वेताम्बर परम्पराओं से ही। वे जैन परम्परा से ही परिचित नहीं है तो फिर दिगम्बर श्वेताम्बर परम्पराओं से परिचित होने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता । आदरणीय साहूजी एवं उनके साथ गये शिष्टमण्डल से भी उन अजैन बन्धु इसीप्रकार की पृथक्तावादी बातें की थीं; पर उन्होंने उनकी बातों को कोई महत्त्व नहीं दिया, पर महासभा के कर्णधार उन्हें तूल देकर न मालूम क्या करना चाहते हैं ? - यह सब हमारी समझ से परे है। महासभा वाले धर्मबन्धु उनके अविश्वसनीय कथनों का निरन्तर प्रचार-प्रसार कर रहे हैं एवं उनके आधार पर उनके बहिष्कार की चर्चा भी बड़े जोर-शोर से चला रहे हैं । वे पृथक् होना चाहते हैं और ये पृथक् करना चाहते हैं । यदि समाज में इन्हीं लोगों की चली तो क्या होगा ? यह सहज ही समझा जा सकता है । क्या समाज का हित इसी में है ? समाज को गंभीरता से इस बात पर विचार करना चाहिए । - महासभा वालों की उदारता की चर्चा हम कहाँ तक करें ? अतिथियों को खाली हाथ वापिस भेजना, उन्हें अभीष्ट नहीं है । अतः वे हम लोगों को भी समाज से निकाल कर उनके साथ भेजना चाहते हैं । स्वामीजी ने श्वेताम्बरों को दिगम्बर बनाया और ये लोग मूल दिगम्बरों को भी श्वेताम्बर बनाने पर तुले हुए हैं। समाज में निरन्तर कह रहे हैं कि सोनगढ़ वालों के साथ जयपुर वालों को भी मन्दिरों में न घुसने दिया जाय। क्या वे जानते हैं कि जिस सूर्यकीर्तिप्रकरण से आपको विरोध है, उस प्रकरण को हजारों नये दिगम्बरों का भी समर्थन प्राप्त नहीं है। पूज्य श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा से निर्मित अनेक जिन

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