Book Title: Bikhare Moti
Author(s): Hukamchand Bharilla, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 173
________________ जिनवाणी सुरक्षा आन्दोलन की संक्षिप्त रुपरेखा 165 सकते। भाई ! आप कुछ भी कहें, पर 'समाज अभी इतना हृदयहीन नहीं हुआ है' - यह हम अच्छी तरह जानते हैं। हमारा यह प्रयास विशुद्ध जिनवाणी की सुरक्षा एवं सामाजिक एकता के लिए ही है, इसमें हमारा स्वयं का कुछ भी स्वार्थ नहीं है। हमें आज भी सम्पूर्ण समाज का पूर्ववत् ही वात्सल्य प्राप्त है । इस अघट घटना के बाद भी हमने समाज में पाँच-पाँच पंचकल्याणक सम्पन्न किए हैं। एक हस्तिनापुर (उ.प्र.) में, एक अहमदाबाद (गुजरात) में, एक बागीदौरा (राजस्थान) में और दो दिल्ली में। सभी पंचकल्याणकों में अपार भीड़ ने बड़े ही प्रेम से तत्त्व सुना है, स्नेह प्रगट किया है। सब में मिलकर एक लाख रुपये से भी अधिक का धार्मिक साहित्य बिका है। अभी हाल ही में सागर (म.प्र.) में २० दिवसीय विशाल शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर भी लगा था, जिसमें लगातार बीस दिन तक हजारों जनता ने मंत्र मुग्ध होकर तत्त्व सुना है और एक लाख का सत्साहित्य और कैसेट बिके हैं। ___ धार्मिक समाज का जो वात्सल्य हमें प्राप्त है, उसके बल पर हम कह सकते हैं कि समाज हमारी निश्छल आवाज की अनदेखी नहीं करेगी। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि जहाँ न तो परम्परा व आगम विरुद्ध कार्य ही हो रहे हैं और न जिनवाणी की विराधना का महापाप; तथा जहाँ सामाजिक संगठन को भी कोई खतरा नहीं है, सर्वप्रकार शान्ति है; वहाँ इस आन्दोलन की क्या आवश्यकता है ? भाई ! आगम विरुद्ध कार्य, जिनवाणी की विराधना एवं सामाजिक विघटन की समस्या क्षेत्र विशेष की समस्या नहीं है, अपितु देश-विदेश में फैली सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज की समस्या है; अतः इस आन्दोलन को क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं रखा जा सकता। क्या यह संभव है कि एक स्थान पर आगमविरुद्ध कार्य होते रहें या जिनवाणी की विराधना होती रहे और दूसरे स्थानों की समाज शान्ति से बैठी रहे?

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