________________
152
बिखरे मोती ___यदि हम किसी को नया जैन नहीं बना सकते तो कम से कम उन्हें तो दिगम्बर जैन बना रहने दें, जो स्वामीजी के प्रताप से बने हैं।"
उन्होंने हमारी बात को गंभीरता से सुना ही नहीं, सहमति भी व्यक्त की। बाद में बोले -
"आपकी बात तो वे लोग मानते हैं, आप उन्हें समझाते क्यों नहीं, ऐसी । पुस्तकों के प्रकाशन से आप उन्हें रोकते क्यों नहीं?" ___ हमने कहा - "भाई, क्या बतायें ? हम तो अपनी शक्ति अनुसार सब करते। हैं, पर जो संभव होता है, वही हो पाता है।"
सूर्यकीर्ति-प्रकरण में महासमिति ने जिस धैर्य से काम किया है, उसकी जिनती सराहना की जावे, उतनी ही कम है। महासमिति के अध्यक्ष श्री साहू श्रेयांसप्रसादजी एवं कार्याध्यक्ष श्री रतनलालजी गंगवाल ने इसमें पूरी तत्परता, बुद्धिमानी एवं धैर्य से काम किया है, किसी भी स्थिति में अपना सन्तुलन नहीं खोया, यह हमारी समाज के लिए गौरब की बात है। यदि समाज के सर्वोच्च पदों पर आसीन लोग ही सन्तुलन खो बैठे तो फिर समाज का क्या होगा? - यह समझने की बात है। __ खेद की बात तो यह है कि महासमिति के शिष्टमण्डल को सोनगढ़ से खाली हाथ लौटना पड़ा। मैं निश्चितरूप से कह सकता हूँ कि यदि पूज्य स्वामीजी होते तो यह शिष्टमण्डल कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता। पर भाई, असली बात तो यह है कि शिष्टमण्डल को जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती; क्योंकि स्वामीजी के माध्यम से यह कार्य तो हम ही निपटा लेते अथवा स्वामीजी की उपस्थिति में इसप्रकार का अदूरदर्शी कार्य आरंभ ही नहीं होता। __ ऐसी स्थिति में भी महासमिति ने किसी भी प्रकार की मर्यादा को भंग नहीं किया यह उनकी महानता एवं सदाशयता को सूचित करता है। ___ महासभा के कर्णधार एक ऐसे व्यक्ति के कथन के आधार पर जो मूलतः अजैन है, जिनका संपूर्ण परिवार आज भी अजैन है, कुछ ऐसी बेसिर-पैर की बातों का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं, जिनसे सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज का ही