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एक इन्टरव्यू : श्री नेमीचन्दजी पाटनी से
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उत्तर
हमारे पास इसकी मूल प्रति है । उसकी फोटो छापकर सारी समाज के सामने रख देंगे। समाज अपने आप सब देख लेगी ।
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और आप दूसरी बार चर्चा करने की कहते हैं सो चर्चा क्या गालीगलौच के वातावरण में होती है? एक ओर तो गैर दिगम्बर घोषित करते जाते हैं और फिर चर्चा की भी बात करते हैं । एक ओर गालियां बकते जाते हैं और दूसरी ओर सद्भावना की बातें करते हैं । जिनवाणी के अपमान की अपील करते हैं और सद्भावना की बातें करते जाते हैं। क्या इसी का नाम सद्भावना है ?
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हमारी ओर से चर्चा में भाग लेने वाले आदरणीय विद्वद्वर्य पण्डित जगन्मोहनलालजी जैसे प्रामाणिक व्रती विद्वान पर 'पैसा बोल रहा है' जैसे गंदे लेख लिखे जाते हैं और शांति की बात करते जाते हैं। आप क्या चाहते हैं कि ऐसे लोगों से चर्चा की जावे, जिन्हें सामान्य सद्व्यवहार करना भी नहीं आता ?
प्रश्न
यह तो ठीक है कि बिना सद्भाव का वातावरण बनाये किसी भी प्रकार की चर्चा संभव नहीं है, पर यदि कुछ दिनों दोनों ओर से ही आलोचना- प्रत्यालोचना बन्द कर दी जावे और चर्चा के योग्य वातावरण बनाया जावे तो फिर वातावरण ठीक होने पर चर्चा हो सकती है ?
उत्तर हो क्या नहीं सकता? पर कोई करना चाहे तब । जिसे लड़ना ही है, उससे क्या बात हो सकती है ? पहिले वे या तो हमारे द्वारा प्रकाशित खानियाँ चर्चा प्रमाणित घोषित करें या फिर जो उनके पास प्रति है, उसके आधार पर छापें । यदि फिर भी आवश्यकता रही तो दुबारा चर्चा हो जावेगी । मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई की वातावरण ठीक हो जावे और खानियाँ चर्चा उनकी ओर से भी प्रमाणिक हो जावे, उसका पर्याप्त वितरण हो जावे, यदि फिर भी आवश्यकता हुई तो आप चर्चा करने को तैयार हैं? आपने इतनी बात कही सो हमें इतना कहना पड़ा है। अन्यथा स्वामीजी का तो यही कहना है कि कहाँ झगड़ों में मनुष्य भव बर्बाद करते
प्रश्न
उत्तर
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