Book Title: Bhikshu Vichar Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 173
________________ १६४ : भिक्षु विचार दर्शन विचार समान कैसे हो ? यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि सब आदमी एक ही प्रकार से कैसे सोचें ? शरीर पर नियन्त्रण हो सकता है, पर विचारों पर नियन्त्रण कैसे हो ? विचारों पर नियन्त्रण किया जायें तो व्यक्ति की स्वतन्त्रता नष्ट होती है । विचारों को खुली छूट दी जाए तो एकता नष्ट होती है । ये दोनों अपूर्ण हैं । साम्यवादी स्वतन्त्र विचारों की अभिव्यक्ति पर नियन्त्रणं लगाते हैं तो जनतन्त्र में विचारों की उच्छृंखलतापूर्वक अभिव्यक्ति होती है । दोनों ही दोषमुक्त नहीं हैं। विचारों की स्वतन्त्रता की हत्या न हो और उच्छृंखलता न बढ़े, एकता का धागा न टूटे, इसलिए किसी तीसरी धारा की आवश्यकता है । जहां सिद्धांतवादिता कम होती है, वहां विचार-भेद भी कम होता है । सिद्धान्तों की गहराई में विचारों के भेद पनपते रहते हैं । जैन-दर्शन सिद्धान्तवादी अधिक है । उसमें तत्त्वों की छानबीन बड़ी सूक्ष्मता से की गई है । अहिंसा और संयम की ऐसी सूक्ष्म रेखाएं हैं कि जिनसे थोड़े में ही विचार-भेद की सृष्टि हो जाती है। इसके साथ अनेकान्त का ठीक-ठीक उपयोग किया जाए तो विवाद खड़े भी न हों और क्वचित् हो भी जाएं तो वे सहसा मिट जाएं पर उसका उपयोग बहुत कम किया जाता है 1 जैन-धर्म के सम्प्रदायों का इतिहास देखिए । उनकी स्थापना के मूल में जितना एकान्त है, उतना अनेकान्त नही । सम्प्रदाय बहुत है, यह कोई बहुत बड़ा दोष नहीं है । सम्प्रदायों में अनेकता बहुत है, यह बड़ा दोष है वीर - निर्वाण के पश्चात् शताब्दियों तक संघ में एकता रही। यद्यपि व्यवस्था की दृष्टि से कुल और गण अनेक थे, पर संघ एक था । वीर- निर्वाण की दसवीं शदी या देवर्धिगणी के पश्चात् संघ की एकता विच्छिन्न-सी होती गई। वर्तमान में केवल सम्प्रदाय हैं । संघ जैसी वस्तु आज नहीं है । पहले जो स्थिति संघ की थी वहीं आगे चलकर सम्प्रदायों की होने लगी। एक ही सम्प्रदाय में अनेक मत और अनेक परम्पराएं स्थापित होने लगीं। जैनों में आपसी मतभेद होने का मुख्य विषय आगम हैं । उनकी धार्मिक मान्यता का सर्वोपरि आधार आगम हैं। दिगम्बर जैन कहते हैं - आगम लुप्त हो गए। श्वेताम्बर जैन कहते हैं-कुछ आगम लुप्त हो गए और कुछ आगम अभी भी विद्यमान हैं। कुछ श्वेताम्बर सम्प्रदाय ४५ आगमों को और कुछ ३२ आगमों को प्रमाण मानते हैं । ४५ को प्रमाण मानने वालों में भी मतैक्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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