Book Title: Bhikshu Vichar Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 196
________________ ७. अनुभूतियों के महान् स्रोत आचार्य भिक्षु चिन्तन के सतत प्रवहमान स्रोत थे। उनसे अनेक धाराएं प्रस्फुटित हुई हैं। हम किसी एक धारा को पकड़कर उसके स्रोत को सीमित नहीं बना सकते। उनके एक में सब और सब में एक है। अनुभूति की धारा में से सब धाराएं निकली हैं और सब धाराओं में अनुभूति का उत्कर्ष है। उनकी अनुभूति में शाश्वत सत्यों और युग के भूत, भावी और वर्तमान के तथ्यों का प्रतिबिम्ब है। १. कथनी और, करनी और कथनी और करनी का भेद जो होता है, यह नई समस्या नहीं है। यह मानव-स्वभाव की दुर्बलता है, जो सदा से चली आ रही है। इस.ध्रुवसत्य को आचार्यवर ने इन शब्दों में गाया है : जो स्वयं आचरण नहीं करते, अज्ञानी बने हुए चिल्लपों मारते हैं, वे गायों के समूह में, गधे की भांति रेंकते हैं। २. भेद का भुलावा. जीवन के बनने-बिगड़ने में तीन वर्गों का प्रमुख हाथ होता है-माता-पिता, मित्र और गुरु। इनमें सर्वोपरि प्रभावशाली व्यक्ति गुरु होते हैं। गुरु कलाचार्य को भी कहा जाता है और धर्माचार्य को भी। गुरु का भावात्मक अर्थ है, शिक्षा का स्रोत। वह पवित्र होता है, व्यक्ति को पावन प्रेरणाएं मिलती हैं। वह अपवित्र होता है, व्यक्ति को अपवित्र प्रेरणाएं मिलती हैं। जो धर्म-गुरु का वेश पहने हुए होता है और कर्तव्य में कुगुरु होता है उनके सम्पर्क-जनित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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