Book Title: Bhikshu Vichar Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 212
________________ अनुभूतियों के महान् स्रोत : २०३ दिन उसकी मां ने कहा-बेटा, जाओ! यह पोटली अपने चाचा के पास ले जाओ। रुपयों की जरूरत है, इसलिए कह देना-ये रत्न बेच दें। लड़का दौड़ा। रत्नों की पोटली चाचा को सौंप दी और मां ने जो कहा वह सुना दिया। चाचा ने उसे खोल देखा तो सारे रत्न नकली थे। उसने पोटली को बांध उसे उसी क्षण लौटा दिया और कहला दिया कि अभी रत्नों के भाव मंदे हैं, जब तेज होंगे तब बेचेंगे। चाचा ने उस बच्चे को रत्नों की परख का काम सिखाना शुरू किया। थोड़े समय में ही वह इस कला में निपुण हो गया। एक दिन चाचा ने उसके घर आकर कहा-बेटा! रत्नों के भाव तेज हैं, वे रत्न बेचने हों तो अपनी मां से कह दो। वह पोटली आयी। उसने तत्परता से उसे खोला। देखते ही उन रत्नों को फेंक दिया। मां देखती रही। उसके लिए वे रत्न थे, किन्तु उसके पुत्र के लिए, जो रत्नों का पारखी बन चुका था, अब वे रत्न नहीं रहे। १७. उछाला पत्थर तो गिरेगा ही किसी ने पूछा-गुरुदेव! साधुओं को असुख क्यों होता है, जबकि वे किसी को भी दुःख नहीं देते? . आचार्य भिक्षु ने कहा-जिसने पत्थर उछालकर सिर नीचे किया है, उसके सिर पर वह गिरेगा ही। आगे नहीं उछालेगा तो नहीं गिरेगा। पहले दुःख दिया है वह तो भुगतना ही है। अब दुःख नहीं देते हैं तो आगे दुःख नहीं पाएंगे। विवेक का अर्थ है-पृथक्करण । भलाई और बुराई दो हैं । विवेक उन्हें बांट देता है। कोई आदमी आज भला है, पर वह पूर्व-संचित बुराई का फल भोगता है। प्रश्न हो सकता है-यह क्यों? इसका उत्तर यही है कि विश्व की व्यवस्था में विवेक है। __ कोई आदमी आज बुरा है पर वह पूर्व-संचित भलाई का फल भोगता १. अणुकम्पा, ७.१६ काच तणा देखी, मिणकला, अण समझा हो जाणे रतन अमोल। ते निजर पड्यो सराफ री, कर दीधो हो त्यांरो कोड्यां मोल॥ २. भिक्खु दृष्टान्त, १२२, पृ. ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218