Book Title: Bhikshu Vichar Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 195
________________ १८६ : भिक्षु विकार दर्शन अधिक न रहें कारणवश रहना पड़े तो भिक्षा के घरों को बांट लें।" . इस व्यवस्था के अनुसार जहां आचार्य हों अथवा उनकी आज्ञा हो, वहां एक गांव में साधु-साध्वियां दोनों रहते हैं उसके सिवाय गांव में नहीं रहते। __ आचार्य भिक्षु ने गण की व्यवस्था में भगवान् महावीर के आठ सूत्रों को क्रियान्वित किया। भगवान् ने कहा था-इन आठ स्थानों में भली-भांति सावधान रहो, प्रयत्न करो, प्रमाद मत करो। वे ये हैं १. अश्रुत धर्मों को सुनने के लिए प्रयत्नशील रहो।। २. श्रुत धर्मों का ग्रहण और निश्चय करने के लिए प्रयत्नशील रहो। ३. संयम के द्वारा पाप-कर्म न करने के लिए प्रयत्नशील रहो। ४. तपस्या के द्वारा पुराने पाप-कर्मों को नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील रहो। ५. अनाश्रित शिष्य-वर्ग को आश्रय देने के लिए प्रयत्नशील रहो। ६. नव-दीक्षित साधु को आचार-गोचर सिखाने के लिए प्रयत्नशील रहो। - ७. ग्लान की अग्लान भाव से सेवा करने के लिए प्रयत्नशील रहो। ८. साधार्मिकों में कोई कलह उत्पन्न होने पर आहार और शिष्य-कुल के प्रलोभन से दूर, पक्षपात से दूर, तटस्थ रहकर चिन्तन के लिए कि मेरे साधार्मिक कलह मुक्त कैसे हों, प्रयत्नशील रहो। उस कलह को उपशान्त करने के लिए प्रयत्नशील रहो। १. लिखित, १८५०, १८५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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