Book Title: Bhikshu Vichar Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 205
________________ १६६ : भिक्षु विचार दर्शन जाल में फंस गया। गाड़ी चली और मामा के कुबुद्धि का प्रयोग शुरू किया। वह चलते-चलते गिर पड़ा, उठाया और फिर गिर पड़ा। जोर-जोर से सांस लेने लगा। गाड़ीवान ने सोचा-बैल मरने वाला है। उसने उसे मार गाड़ी में डाल दिया। अब एक बैल से गाड़ी कैसे चले? आस-पास गधा घूम रहा था, उसे पकड़ गाड़ी में जोत दिया। वे दोनों दुःखी हुए-बैल मारा गया और गधे को जुतना पड़ा। उसी प्रकार कुबुद्धि सिखानेवाला और सीखने वाला दोनों दुःखी होते हैं। १०. गिरगिट के रंग ___ व्यक्तित्व की पहली कसौटी है-सहिष्णुता। इसे पाए बिना कोई भी व्यक्ति मन का संतुलन नहीं रख पाता। जो परिस्थिति के बहाव में ही बहता है, थोड़े में प्रसन्न और थोड़े में अप्रसन्न हो जाता है, उसका अपना कोई व्यक्तित्व नहीं होता। एक संस्कृत कवि ने कहा है जो क्षण में रुष्ट और क्षण में तुष्ट होता है, क्षण में तुष्ट और क्षण में रुष्ट होता है, इस प्रकार जिसका चित्त अनवस्थित है, उसकी प्रसन्नता भी डराने वाली होती है। आचार्य भिक्षु ने ऐसे मनोभाव की तुलना सोरे से की है सोरा मुंह में डालने पर ठंडा लगता है, अग्नि में डालने पर वह भभक जाता है। क्षण में प्रसन्न और क्षण में अप्रसन्न होता है। वह सोरे के समान है। भोजन, जल, वस्त्र मिलने पर १. विनीत-अविनीत, २.१३-१४ बुटकने गधेडे दुराचारी, तिण कीधी घणी खोटाइ रे। आप छांदे रह्यो उजाड में, एक बलद ने कुबद सीखाई रे॥ तिण अविनीत बलद ने तुरकियां, मार गाडा में घाल्यो रे। बुटंकनां ने आण जोतर्यो हिवे जाय उतावल सूं चाल्यो रे॥ ज्यूं अविनीत ने अविनीत मिल्या, अविनीतपणो सिखावे रे। पछे बुटकना ने बलद ज्यूं, दोनूं जणा दुःख पावे रे॥ २. क्षणे रुष्टः तुष्टः, रुष्टः तुष्टः क्षणे-क्षणे। अनवस्थितचित्तानां, प्रसादोऽपि भयंकरः॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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