Book Title: Bhikshu Vichar Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 198
________________ अनुभूतियों के महान् स्रोत : १८६ थोड़ी या अधिक संख्या में नहीं। आत्म-कल्याण साधना में है। समाधान उन्हें मिलता है, जिनके हृदय में पवित्र श्रद्धा होती है।' ४. अनुशासन और संयमी तमिल भाषा के कवि मुन्सरै मरुदनाट ने कहा है- “यदि किसी मनुष्य के पास अपार धन-सम्पत्ति हो, पर उसमें सच्चा संयम न हो, ऐसे व्यक्ति को अधिकार देना बन्दर के हाथ में मशाल देने के बराबर है। __ मशाल न मुझे और न दूसरों को जलाये-यह तभी हो सकता है जब वह योग्य व्यक्ति के हाथ में हो। संयमहीन भी और साधु भी, ये दोनों विरोधी दिशाएं हैं अंकुश के बिना जैसे हाथी चलता है लगाम के बिना जैसे घोड़ा चलता है, वैसे ही संयम के बिना कुगुरु चलता है, वह केवल कहने के लिए साधु है।' ५. श्रद्धा दुर्बल है भगवान् महावीर ने कहा-श्रद्धा दुर्लभ है। स्वामीजी ने इसे अपने हृदय की अनुभूति के रंग में रंगकर नया सौंदर्य प्रदान किया है यह जीव अनन्त जीवों को सिद्धान्त पढ़ा चुका है, अनंत जीवों से सिद्धांत पढ़ चुका है। १. निन्हव री चौपाई, ४, २७-२८ घणारे भरोसे कोइ रहिजो मती रे, सरधा ने चलगति मीढी जोय रे, लोक भाषा मांहि पिण इम कहे रे, घी खाधो पिण कुलडो न गयो कोय रे, बले थोडा घणां रो कारण को नहीं रे, सुध करणी. सूं पांमे सदा समाध रे। २. तिम साहित्य और संस्कृति, पृ. ८६ ३. आचार री चौपाई, १.३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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