Book Title: Bhikshu Vichar Darshan
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 185
________________ १७६ : भिक्षु विचार दर्शन पृथक् होने के समय उन्हें साथ न ले जाए; क्योंकि वे सब गण के साधुओं की “निश्रा' में हैं। ५. कोई पुस्तक आदि गृहस्थों से ले, उन्हें आचार्य की, गण की 'निश्रा' में ले, अपनी 'निश्रा' में न ले। अनजाने में कोई ले भी ले तो वे पुस्तक-पन्ने आचार्य के हैं, गण के हैं, उन्हें गण से पृथक् होते समय साथ न ले जाए। ६. पात्र आदि भी गण में रहता हुआ ले, वे भी आचार्य गण की 'निश्रा' में ले, आचार्य दे वह ले। पृथक् होते समय उसे साथ न ले जाए। ७. नया कपड़ा ले, वह भी आचार्य और गण की 'निश्रा' में ले। गण से पृथक् होते समय उसे साथ न ले जाए। ८. गण से पृथक् होने के पश्चात् गण के साधु-साध्वियों के अवगुण न बोले। ६. शंका बढ़े, आस्था घटे, वैसी बात न कहे। १०. गण में से किसी साधु को फंटाकर साथ न ले जाए, वह आए तो भी न ले जाए।' ११. गण से पृथक् कर देने पर या स्वयं हो जाने पर वहां न रहे, जहां इस गण के अनुयायी रहते हैं। चलते-चलते मार्ग में वह गांव आ जाए तो एक रात से अधिक न रहे। कारण विशेष में रहे तो 'विगय' न खाए। (कोई पूछे यह निषेध क्यों, तो उसका कारण आचार्य भिक्षु ने इन शब्दों में बताया है-"राग-द्वेष और क्लेश बढ़ने तथा उपकार घटने की सम्भावना को ध्यान में रखकर ऐसा किया है।") गण से पृथक होते समय एक पुराना 'चोलपट्टा', एक ‘पछेवड़ी', चद्दर मुखवस्त्रिका, पुराने कपड़े और पुराना रजोहरण-इनके सिवाय और कोई उपकरण या पुस्तक साथ में न ले जाए। इन निर्देशों में सामुदायिक जीवन-प्रणाली की एक स्पष्ट रूपरेखा है आचार्य भिक्षु ने जितना बल संविभाग पर दिया है उतना ही बल प्रत्येक धर्मोपकरण के संघीयकरण पर दिया है। साधु किसी भी धर्मापकरण पर ममत्व न रखे-यह आगमिक सिद्धान्त है। इसे उन्होंने व्यवस्था के द्वार व्यावहारिक रूप प्रदान किया। १. लिखित, १८५० २. वही, १८५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218