Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text ________________ श्रीअमम // 242 // जिनचरित्रम् वने गमनश्रमिता दमयन्त्या गाढनिद्रा दवानलमनुभ्राम्यन्पाणौ विधृत्य ताम् / पाणिग्रहोत्सवमिवास्मरयहुःखविच्छिदे // 72 // ललाटे पट्टबंधोऽभूत्प्रसादेन नलस्य यः। स एव पदयोभैम्याः स्फुरत्कार्तखरांशुकः // 73 // खं कुंकुंमरसैः पूर्व रागमाख्यन्नलस्य या। सैव भैम्याः पदश्रेणी सांप्रतं शोणितैर्हहा | // 74 // मार्ग पादै रिपुषातैखोटनीयं जना विदुः / अविश्रामं ततो गच्छ श्रमो ह्यत्राधिकोभवेत् // 75 // योजनानां शतं चासावटव्य| प्यस्ति वल्लभे / पंचैव योजनान्यस्याः क्रांतानीत्युद्यमं कुरु // 6 // एवं वायतो राज्ञः प्रियामस्ताचलं रविः / तदुःखादिव संत्रुव्यदाशावसुभरो ययौ / / 77 // त्रिभिर्वि०॥ जलमध्यस्थितोप्यासीहुरीक्षो यः स्वतेजसा / सुनिरीक्षोऽभवत्सायं सोऽप्यर्कः कालसूत्रतः // 78 // दवदंतीविपत्खेदात्स्फुटिते वासरश्रियः / भानौ हृदीव | तद्रक्तधारासंध्याऽस्फुरत्ततः // 79 // प्रोषिते नलवद्धानौ साधुचक्रैरखिद्यत / तमसा कूबरस्येवापूरि दुर्यशसा जगत् / / 80 // दुःकर्मनायं नटितुमुद्यते नटवनले / विश्वरंगे यमनिकांतरवत प्रासरत्तमः॥८॥ चिकीर्षुः खमिवाशोकमशोकस्य तरोर्दलैः / कोमलैस्तल्पमा| स्तुत्य श्रांतां कांतां नलोऽवदत् // 82 // देवि ! निद्रां कुरु गुरुश्रमलमरुजौषधी / दुःखापहारिणीमेनां सखीवद्विद्धि संप्रति // 83 // उवाच भीमजाऽप्यत्रं वने मे कंपसंपदा / द्विधेव हृदयं भावि तदने देव ! गम्यते // 84 / / किंच कश्चित पश्चिमायां गवां हंभारवश्र-| |वात / ध्रुवं संवसथः प्रत्यासन्नः संभाव्यते प्रिय ! // 85 // तत्तत्र गम्यते नाथ! सनाथे तन्निवासिभिः / येनास्मिन्निभयं रात्रिः सुख| सुप्तैनिंगम्यते // 86 // उवाच नैषधिः भीरु ! मा भैषीमयि पार्श्वगे। इहैव शेष्व मत्खड्गो यामिकस्तेऽस्ति कीर्तिवत् // 87 // किंच | संवसथो नाऽयं किन्तु स्यात्तापसाश्रमः / तेषां मिथ्यादृशां योगः प्रिये ! सम्यक्त्वनाशकृत् // 88 // सम्यक्त्वं दुग्धवत्तावत्स्यात् सतामविनश्वरम् / यावत्पार्श्व न मिथ्याक्चारो नकुलचारवत् // 89 // क्षिवा पल्लवतल्पे स्वं संव्यानार्द्ध महीपतिः / व्यस्मारय सर्ग-६ // 242 //
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