Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text ________________ 82*48 पर्णः त्सुखम् // 12 // दधिपर्णोऽपि जात्याश्वौ लक्षणेलेक्षितौ शुभैः / अर्पयामास स कुब्जस्य रथं चेन्द्ररथाकृतिम् // 13 // समितं च जगा॥२७१॥ दैनं मूर्खस्तत्त्वमसंस्पृशन् / त्वं सुरः खेचरो वाऽसि शक्त्या कामचरः खलु // 14 // भूपतिश्चामरधरौ सूत्रधारः स्थगीधरः / कुब्जश्च | कजेन षट् नियुक्ताश्वमारोहन सन्जितं रथम् // 15 // आवध्य वाससा कव्यां तद्वित्वं सकरण्डकम् / कुब्जोऽथाखेटयद् रथ्यांस्तु तथ्यानुज- नीतो रथेन ell बुद्धिभृत् // 16 // स्वामिचेतोऽप्यतिक्रम्य वजन् सुरविमानवत् / मार्गेऽश्वहृद्विदा तेन प्रेरिताश्वो रथोऽशुभत // 17 // रथवेगानिलो कुण्डिनपुर दुद्धता क्षमापतेः स्कन्धतः पटी। पपात पृथिवीपीठे गंगा गौरीगुरोरिव // 18 // जितोऽस्य वाजिभिर्मन्ये वेगिभिर्वेगवानपि / कुन्जस्य कप्रति दधि|| न्यञ्छनीकत्याऽक्षिपद राजपटीं मरुत् // 19 // प्रच्छदार्थीनृपोवादीद् धार्यतां स्यन्दनः क्षणम् / सित्वा कुब्जोऽपि भूपालमूचे भूपाऽलमर्थनैः // 20 // क्व ? ते लभ्या पटी राजन् ! प्रदेशे यत्र साऽपतत् / पञ्चविंशतियोजन्या स मुक्तः कृत्यमुच्यताम् // 21 वाजिनो मध्यमा घेते स्युस्तु सर्वोत्तमा यदि / इयता तबजेयुस्ते पञ्चाशयोजनान्यपि // 22 // कुब्जस्य कलया देवस्येव संक्रा||न्तया हदि / मुहमर्द्धानमाधुन्वंस्तदेवं दध्यिवान्नृपः // 23 // पंगुनेव खेः कुब्जेनापि सूतेन मे रथः / गन्ताऽनेनेप्सितं स्थानमश्वर सौहदस्पृहा // 24 // स्वकलां दधिपर्णोऽपि व्यक्तुं कुब्जाग्रतः पथि / वीक्ष्याऽक्षवृक्षं फलितं दूरादप्यूचिवानमुम् // 25 // संख्यां जानाम्यकृत्वापि फलानामस्य शाखिनः / आयुष्मन् कौतुकं तेऽग्रे वलितैदशयिष्यते // 26 // कालक्षेपोऽधुना तु स्यात् स च स्वार्थान्तरायकृत / स किं पुमान्न यः स्वार्थमपि साधयितुं क्षमः // 27 // दिदृक्षुस्तकलां चित्रं कुब्जोऽप्यूचे विमेषि किम् ? / कालक्षेपाचमश्वानां स्वान्तज्ञे मयि सारथौ // 28 // ममैकमुष्टिघातेन फलान्यस्माच्च शाखिनः / सर्वाण्यपि पतिष्यन्ति यो नीवार्कताडितान // 27 // // 29 // आचख्यौ दधिपर्णोऽपि सवण्णों ज्ञानिनामिव / अष्टादश सहस्राणि फलानां कुब्जकाग्रतः // 30 // मुष्टिनास्य द्विपस्येव दन्ते
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