Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text ________________ // 275 // कूबरं जित्वा कोशलाप्रवेशे पूर्ववद्राज्य करणम् | शेरैः संख्यारम्भं त्यक्त्वाऽतिकातरः / शारैरेवोररीचक्रे हृष्टः प्राग् दृष्टशक्तिभिः // 87 // पारेभे स पुनधूतं लब्धास्वादस्तदा मुदा / | स्वं नाज्ञासीत्कूटभीतैरिवास्तं सुकृतस्तु धिक् // 88 // भाग्यैरंगीकृतो दीव्यन्नक्षैश्चित्तानुवर्तिभिः / तुरंगैरिव वैदर्भी लघु जित्वाग्रहीन्महीम् // 89 / / राज्ये जितेऽपि क्रूरोऽपि वक्रोऽपि क्षितिमनुवत् / कूबरो गुरुणा चक्रे विशेषात्सौहृदास्पदम् // 10 // न त्याज्यो मणि-| नेवाहिः सतां क्रूरोऽपि सोदरः / इति नैषधिनाऽत्याजि कूबरो न सहोदरः॥९१।। निर्गुणोऽप्युन्नति नेयो गुरुणा स्वसहोदरः / मुख्यश्चक्रे जडोऽपीन्दुः पीयूषेण ग्रहेषु यत्॥९२॥ राज्यलक्ष्म्या वृतेनापि वैदर्भीजानिना पुनः। ध्यात्वैवं ज्यायसा चक्रे कनीयान् यौवरा. ज्यभाक् // 13 // परिरिप्सारसाजातहस्तलक्षामिव ध्वजैः / कोशलामुत्सवात्प्राग्वनलो भैम्या सहाविशत् // 14 // राज्याभिषेकमंगल्यढौकनानि क्षमाभुजः। आनिन्युभक्तितः सर्वे भरतार्द्धनिवासिनः // 95 // यथा स्थानमथ प्रेष्य राजकं राजकुञ्जरः / चके कान्तायुतस्तत्र चैत्येष्वर्चामहोत्सवम् // 96 / / सर्वत्रोद्घोषिताऽमारिः कृतजैनमतोन्नतिः / मौलौ धृताज्ञःक्ष्मापालैनलः क्षोणिमपालयत् // 17 // बहून्यब्दसहस्राणि भैम्या सह सहर्षया / भुनक्ति स्माऽखण्डिताज्ञस्त्रिखण्डभरतश्रियम् / / 98 // एत्य देवो दिवोऽन्येधुनिषधो मर्त्य| रुपभृत् / नलं प्रोचे हहा कीदृक् कुसृष्टिामस्करः // 99 // दिव्यानचन्दनायैर्यल्लाल्यमानोऽपि कौतुकम् / प्रीतिमासादयत्येष पंक-| भोज्यविलेपनैः // 1300 // श्रुत्वेति धारयित्वाशु नरैगर्तकिरिं नृपः। भोज्यविलेपनर्माल्यैर्वसन षणवरैः // 1 // संगीतसोधपल्यकैः * षण्मासानिष्टवत्सुखम् / अनुभाव्याऽमोच्यच्च स्वर्णशृंखलबन्धनात् // 2 // युग्मम् // गृहश्रोतसि गत्वाऽसौ मक्त्वा भुक्त्वा च कर्दमम् / / | विष्टान्तविंचरन् ग्रामकोलैः सार्द्धमगान्मुदम् // 3 // राजा तच्चेष्टितं निन्धं दृष्ट्वं निन्दति स्म तम् / घिगिमं शुचिवस्तुनि त्यक्त्वा योऽशुचिं सेवते // 4 // एवं चिन्तापरं भूपं साक्षाद्भूयोचिवान् सुरः / वत्सैतत्सदृशं तेऽपि चरित्रं दृश्यते यतः // 5 // शमसौख्यम // 27 //
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