Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 293
________________ // 28 // शौर्यपुरे त्वेष त्वया पटहवादनात् / इति तन्निश्चयादेव वं देवासि मया वृतः॥९६॥ अन्येयुगंगनादर्द्धजरत्यागत्य काचन / आस्थानस्थे | श्रीसमुद्रे दत्ताशीर्दन्दुमालपत् // 97 // बालचन्द्रावेगवत्योः पुत्र्योस्वविरहात्तयोः। कृते त्वां नन्तुमागच्छं तन्माता धनवत्यहम् // वसुदेवस्य // 98 // आकर्येति मुखप्रेक्षी कनीयान् ज्यायसौच्यत / वत्स! गच्छापतेः शीघ्रं मास्थाः प्राग्वत्परं चिरम् // 99 // वसुदेवस्तदादेशाद्ययौ व्योम्ना तया सह / सकसः स्वपुरे खागात् ज्यायांस्तत्संगमोत्सुकः // 1400 // उपयेमे च कन्या खां पुरे गगनवल्लभे / शौरिः प्रवेशकाञ्चनदंष्ट्रेण खेचरेन्द्रेण कल्पिताम् // 1 // वणिजां ब्राह्मणानां च क्षत्रियाणां च भूभुजाम् / पुत्रीविद्याधराणां च कलाजयपणैः क्वचित महोत्सवः | // 2 // स्वसौभाग्यगुणेनापि क्वचिदश्यसमागताः / क्वचिद्देवतया दत्ताः क्वचिन्नैमित्तिकोदिताः // 3 // ऊढाः पूर्व निजनिजपरेभ्यः | खेचरेश्वरैः / आनाय्य बन्धुतां प्राप्तैर्विमानेष्वधिरोप्य च // 4 // व्योमगामिभिरन्वीयमानो विद्याधरेश्वरैः / वसुदेवः शौर्यपुरमागाद्वि| द्याधरेन्द्रवत् // 5 // च० क०॥ उत्कण्ठालहरीक्लप्तसमुद्रविजयस्ततः / सपौरः सकुटुम्बस्तं समुद्र विजयोऽभ्यगात् // 6 // आश्लेषे दर्शने वार्ताप्रश्ने चास्याप्रभुस्तदा / अनर्जुनमनिन्द्रं चाफणीन्द्रं खं निनिन्द सः // 7 // उल्लसद्भिः सुधारश्मि क्षीरोदधिरिवोमिभिः / परि| रेभे नृपः प्रत्युद्यान्तं बन्धुं निजैर्भुजैः / / 8 // क्षमयित्वा वसुदेवो वसुदेवोपमः श्रिया / भक्क्याऽनमन्नमन्मौलिः सबन्धुं सप्रियो नृपम् // 9 // स्वापराधं मर्षयित्रा पौर: प्राञ्जलिभिस्तदा / प्रणेमे श्रीवसुदेवः कुमारः सारभक्तिभिः॥१०॥ राजा स्वानुचितं तं च क्षमयि| खेत्यवोचत / भ्रातः सुप्रातमद्यैव दृष्टे प्रद्योतने त्वयि // 11 // काष्ठीभूतं कुलं वृष्णेरिदमध्यात्मिदेहवत् / जीवेनेव जया जीवञ्चके | स्वस्थानसंश्रयात् // 12 // वसुदेवोऽवदद्देव! खस्थानत्याग एव हि / सतां जात्यमणीनां च महिमा वर्द्धतेऽधिकम् // 13 // खामिस्त-1* // 281 // वाप्रसादस्याऽप्येवं यन्मयि वल्पितम् / जज्ञे भाविप्रसादस्य तदितः किश्चिदद्भुतम् // 14 // इत्यालापैमिथः स्थिता प्रेमगर्भः क्षणं

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