Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 304
________________ जिन श्रीअमम- रोपयामास चेतसि / चित्रं दृष्टोऽपि गोपीनां कृष्णः कृष्णेक्षुदण्डवत् // 2 // मण्डलैननृतुर्गोप्यस्तं मध्येकृत्य कौतुकात् / रंगाचार्य इवो चालान् रामस्तालानवीवदद् // 3 // तं नेत्रसुभगं गोपस्त्रियो गोपितमन्मथाः / बालव्यवहृतिव्याजादालिलिंगुर्मुहुर्मुहुः // 4 // अनाक्- चरित्रम् | तोऽपि साकृतैः कृष्णोऽखेल्यत खेलनैः / पणीकृत्य परीरम्भ हठाद् गोपांगनाजनैः // 5 // अव्यक्तं कृष्ण कृष्णेति जल्पन्त्यस्तस्य कृष्णराम॥२९२॥ He वक्षसि / एत्य गोपस्त्रियः पेतुर्मदिरोन्मादकैतवात् // 6 // आसेवने यथा गोष्ठस्त्रीणां तस्येक्षणेऽक्षिणी / आस्तां तथा गुणस्तोत्रश्रुत्यो योः क्रीडा गोकुले जिह्वाश्रुती अपि // 7 // कृष्णेन हृतचित्ताश्च काश्चिद् गोदोहनं भुवि / कुर्वतीर्लज्जयामासुः क्षीरपाणोत्सुकाः सुताः // 8 // यान्तं परा| छमुख काश्चित्तं कर्तुं स्वस्य सम्मुखम् / अस्थानेऽनाटयन भीतिं स हि भीताभयप्रदः // 9 // मयूरपिच्छालंकारो नृत्यन् वेणु च वाद यन् / गोपालीभिः समं कृष्णोऽगायद् गोपालगुर्जरीम् // 10 // यमुनाहदमध्यस्थान्यपि पद्मानि हस्तिवत् / उद्धृत्य गोपीः करिणी-MAS | रिव कृष्णो व्यभूषयत // 11 // वेणुस्वराहृतेरेणकरेणुभुजगैरसौ / अनुजग्मे वने नेत्रगतिकान्तिजितरिव // 12 // चुम्बकोपि स गोपीनां पीनांसस्थलखेलनः / सरशल्यं दुराकर्ष हृदि चिक्षेप कौतुकम् // 13 // तं भ्रामकमनुभ्रेमुः प्रेमग्रहिलमानसाः / प्रौढगोपांगनाः सार-Ide पत्रीवत्कठिना अपि // 14 // तव बन्धुरसौ कृष्णो हरत्यक्षिगतोऽपि नः / चेतोरत्नमिति च्छेका रामं पर्यन्वयुञ्जत // 15 // पूर्व तपोव्ययक्रीतसौभाग्यातिशयादसौ / नित्यं नव इवानन्दाद् गोपीवृन्दैरमन्यत // 16 // हर्ष नन्दयशोदयोनवनवैर्लीलायतैस्तन्वतः, श्रीरामेण गरीयसापि लघनेवाऽन्वीयमानस्थितेः / गोपिभिः सह खेलतःसुखसुखेनैकादशैकाहवत , वर्षाण्येवमगः परिप्रथयतः कृष्णस्य |गोपालताम // 17 // अममचरिते भाविन्येवं तयोः सहजन्मनोजेनयितुरिदं वृत्तं दुन्दोस्तुरीयभवस्थितौ / तनुजनितया तस्यैव द्योः // 292 // | शुभैरवतीर्णयोरपि बलहरीत्याख्याविख्यातयोश्चरितं मुदे // 18 // सर्ग-६ 18958*48***

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