Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text ________________ श्रीअमम जिन चरित्रम् // 276 // | हाखानेस्त्वं दीक्षायाः पराङ्मुखः / भोगाशुचौ भवपके विचरन्निति मोदसे // 6 // अतिनिन्द्यस्य वा गचकोलात्को लातु तेभिधाम् / / अमेध्यमपि मेध्यं स्वं जानन् यस्तं प्रणिन्दति // 7 // हस्त्यश्वरथपादातश्रीगृहस्त्रणमंत्रिणः। राज्ञां सप्ताप्यमी सप्तनरकावासदायिनः | // 8 // सृष्टस्त्वमपि पाठीनो धात्रा वार्द्धकवैशसात् / भवाब्धौ विषयावर्ते यदधोधो मिमक्षसि // 9 // कुब्जीभूतस्तदारण्ये विषादाद्यद| चिन्तयत् / तद् व्रत विस्मरन् सम्प्रत्यहो साहसिको भवान् // 10 // निषधोऽहं पिता ते प्राग् दीक्षाकालनिवेदनम् / प्रत्यश्रीषं तद् व्यधां च तत्त्वं जागृहि जागृहि // 11 // आयुस्तरोः फलं मुख्यं दीक्षामादत्स्व वत्स ! तत् / वर्त्तते समयो ह्येष विषयेच्छां द्विधा त्यज // 12 // * उक्त्वेत्यन्तहिते देवेऽवधिज्ञानिनमागतम् / जिनसेनं गुरुं ज्ञात्वाऽगानन्तुं सप्रियो नृपः॥१३॥ युग्मम् // प्रणम्य भववैराग्यकरी श्रुखा च देशनाम् / ताभ्यां स्वप्राग्भवान् पृष्टः कथयित्वेति सोऽभ्यधात् // 14 // क्षीरदानात्वया साधो राजन् राज्यमुपायंत / भैम्या तु शीलतपसोरहद्भक्तेश्च वैभवात् // 15 // यन्मुनिदशघटीः क्रोधेन स विडम्बितः / युवाभ्यां विरहस्तेन द्वादशाद्वानि वामभूत् // 16 | ज्ञात्वेति पश्चानुपूर्व्या कामादर्थाच्च तौ मनः / व्यावर्त्य स्वं धर्म एवाध्यामासतुः स्थिरम् // 17 // आरोप्य पुष्कले राज्यभारं पुत्रे | ऽग्रहीदऽथ / जिनसेनगुरोः पार्श्वे व्रतं भैम्या समं नलः // 18 // गुरुस्तावशिषजन्तोस्तितीर्पोर्भववारिधिम् / नृजन्मपोते लब्धेऽपि चारित्राप्तिः सुदर्लभा // 19 // तस्याऽतिचारतो भंगे स्यानिस्तारकथा वृथा / ज्ञात्वेति भव्यौ कार्य तद्रक्षणे प्रयतं मनः // 20 // | युग्मम् // भैमी व्यहार्षीत्साध्वीभिर्गुरुणा तु समं नलः / श्रुतान्यऽधिजगाते तो तेपाते च तपोऽद्धतम् ॥२॥चित्र भीष्मतपोग्रीष्म शोषितांगोऽप्यथाऽन्यदा / भैमीं दृष्ट्वान्तराद्रोऽभून्नलः कादम्बिनीमिव // 22 // भोगेच्छा कन्दलीवाऽस्य शुष्काप्याविरभूत्पुनः / | त्रिजगजित्वरा वीरा अपि कामस्य किंकराः॥२३॥ दाहोऽभूद् ज्वलतोऽमेरप्यहेरपि विषाक्लमः / यद्वा योजितकामस्य कामाचल निषधदेवे नागत्य दीक्षासमये सूचिते नलभैम्योदीक्षाग्रहणम् | सर्ग-६ // 27 //
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