Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text ________________ श्रीअममा जिन // 278 // |क्ष्माभृत्पद्मरथात्मजाम् // 38 // नीलकण्ठेन तत्रापि हुतश्चम्पासरोवरे / त्यक्तः स च तदुत्तीणों व्यवहन्मंत्रिणः सुताम् // 39 // हृत्वा / पुनः सूर्पकेण मुक्तो गंगाजले ततः। उत्तीर्य वीर्यवांस्तच्च सोगात्पल्ली सहाध्वगैः॥४०॥ जराख्यां स्मरभिल्लेशभल्ली पल्लीशितुः चरित्रम् सुताम् / ऊहे जराकुमारं चाजनयत्तनयं सच // 41 // अवन्तिसुन्दरी सूरसेना च द्वेषिणी नृषु / तेन जीवयशाः कन्याश्चान्याः प्रौ स्वयंवरमह्यन्त भूभुजाम् // 43 // स गच्छन्नन्यदाऽन्यत्र मार्गे सौभाग्यतुष्टया / ऊचे देव्या कयापीति प्रत्यक्षीभूय भाग्यभूः // 44 // मया ण्डपे रो हिण्या रुधिरराजस्य कन्यारिष्टपुरेशितुः / रोहिणी रोहिणीवेन्दोस्तव दत्ता स्वयंवरे // 45 // व्रज पाटहिकीभूय तूर्ण तत्र च मण्डपे / पाटहिकी| पटहं वादयेः क्षोभ मा धाश्चिान्यभूभृताम् // 46 // इत्यादिष्टस्तया शौरिर्गतोऽरिष्टपुरे द्रुतम् / जरासन्धादिभूपाढ्ये स्वयंवरणमण्डपे भूतवसुदे|॥४७॥ रोहिणी त्रिजगच्चित्तारोहिणी रूपलीलया। तत्राययौ राजमाना स्वयंवरणमालया // 48 // तस्यै रोचयितुं खं च भूपैस्तत्तद- वो वृतः चेट्यत / स्वभावसुभगार्थिन्यै पुनरेकोपि नारुचत् // 49 // तद्राजकं साजकवत्पुनमेंने मनखिनी / शृंगारडम्बरोद्दाममपि सौन्दर्यवर्जितम् // 50 // तदाऽन्यवेषेणाऽनकदुन्दुभीत्यभिधामिव / स्वस्थाऽर्थापयितुं देव्या वचनं संस्मरन् हृदि // 51 // कुमारश्रीवसुदेवस्तत्र वादित्रवादिनाम् / मध्यस्थः पटहं वर्णैर्व्यक्तैरित्थमवादयत् // 52 / / यु०॥ एह्येहि वृणु मां तन्वि! नत्वितः प्रेक्षसि किमु / | वरोऽहं तेऽनुरूपोऽस्मि प्रीतिरोहिणी रोहिणि ! // 53 // श्रुत्वैवमुपसत्याऽथ दृशा सौभाग्यमन्मथम् / निश्चित्य रोहिणी शौरिमलंचक्रे वरस्रजा // 54 // सत्सु धन्येषु राजन्येष्वहो पाटहिको वृतः। राजपुत्र्याऽथवा स्त्री स्यान्नदीवन्नीचगैव हि // 55 // इति केचिन्नृपाश्चक्रु // 278 // रुपहासं परस्परम् / तौयिक हत हतेति केचित्कलकलं पुनः // 56 // यु०॥ कोशलेशस्तथा दन्तवको वक्रोक्तियुक्तिवित् / उच्चै रुधिरमित्यूचे वैरं वैरंगिको वहन् / / 57 / यदि नीचाय कन्येयं भवता दित्सिता ततः। प्रहः किमाइः सदश्यान् सदश्यस्वं नृपानऽमून् 6
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