Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text ________________ // 273 // ****** प्रकटीभूते नले सर्वेषों कुब्जोऽथवा खञ्जोऽन्यादृशो वाऽस्तु केवलम् / स्यात्तत्र हेतुराचार्यनिश्चयानल एव तु // 50 // स्वप्रत्यक्षा परीक्षास्ति नलस्या न्यापि निर्णये / यन्मे नलांगुलिस्पर्शेऽप्यंगमुत्कंटकं भवेत् // 51 // अभ्यर्थ्य कुब्जोऽकुब्जत्वं नीत्वान्तः प्रोच्यतां तथा / यथा | तिलककारीवाऽङ्गुल्या स्पृशति मां लघु // 52 // ____ असौ पुत्र्यास्त्रपाहेतुरप्युक्तिः समभूत् पितुः / वान्ते पतिव्रतात्वस्य दुर्द्धरस्य प्रतीतिकृत् // 53 // कुब्जः पृष्टो नलोऽसीति |* भीमाद्यैः प्रत्युवाच तान् / भ्रान्ताः स्थ कामरूपः क ? श्रीनलः क्वाऽस्मि कुब्जकः // 54 // सदुःखमुपरुद्धोऽथाऽङ्गल्यग्रेणातिलाघ-1 के * वातदाख्यस्पिटकवद भैम्या वक्षः पस्पर्श कुब्जकः॥५५॥ ईषत्स्पृष्टापि सा तेन घनेनेव वसुन्धराम् / असंभाव्यान् परस्पर्श लेने रोमाइश्चिरात // 56 // रोमाञ्चकण्टकव्याजात्तस्यास्तविरहोद्भवम् / दुःख देहाद् बहिर्मन्ये रोमरन्धैर्विनिर्ययौ // 57 // धर्ताऽत्याक्षीस्तदा सप्तामेकां मां काननान्तरे / इदानीं जाग्रती लोकैर्वृतां त्यक्त्वा क ? यास्यसि // 58 // चिरात्त्वं नाथ ! दृष्टोऽसि मयूरी मिव मां ततः। उन्नमय्यात्मनो रूपमाश्वासय कृपाघन! // 59 / / उक्त्वेति नीत्वा गेहान्तस्तया स्नेहकिरा गिरा / सोऽत्याजि सत्रधार्यव वंशवद | वक्रतां हृदः॥६०॥ अथ बिल्वात् करण्डाच्चाकृष्टेर्वखविभूषणैः / न्यस्तैर्दहे नलोऽत्याक्षीत्तुष्टस्तां कुब्जा बहिः॥६॥ वीक्ष्याव्यक्तमपि व्यक्तं रूपं सा पत्युरात्मनः / रूपस्था ध्यानलीनाऽभूद् योगिनीव क्षणं तदा // 62 // सा त्रपाधाष्टर्ययोर्मध्ये स्थिता स्वेदाञ्चिता बभौ। सद्यः शान्तवियोगाग्नितापा हर्षान्धिमजनात् // 63 // नलेन वीज्यमांनांगी चंचलैनयनाश्चलैः / सा कम्पसम्पदं भेजे स्वेदाम्भोभिः | परिप्लुता // 64 // साधं कनीनिकाकान्तिर्वांकुरकरम्वितैः / ददौ दृक्शुक्तिनिर्मुक्तैः पत्युरानन्दवारिभिः // 65 / / गंगेवाब्धि सुधेवेन्द* सा विभ्राणा रसं भृशम् / तमालिलिंग सर्वांग तादात्म्यमिव तन्वती // 66 // कल्पवल्लीव कल्पढ़े पूर्ण नागलतेव च / सा तं नानाविधै ****** ** // 273 // ****
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