Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 282
________________ श्रीअमम // 270 // कुब्जाकृतिः स चेत् / रथाश्वैः प्रेरितरेव स्वयं विज्ञास्यते ततः॥९४॥ आत्तप्रवयणे तसिंस्तन्मनोज्ञा इव क्षणात् / यान्त्यश्वाः प्रेप्सितं l जिनस्थानं वाताः प्राप्ता इवाश्वताम् // 95 // निवेद्य दिनमासन्नं यस्तत्रैति नलो ह्यसौ / आस्तां नलः पशूनामप्यसह्यः स्त्रीपराभवः // 16 // चरित्रम् | इति पुत्र्या सहालोच्य प्रहितो भीमभूभुजा / गत्वा दूतः सुंसुमारपुरेश्वरमदोवदत् // 17 // प्राप्ता नलस्य वार्तापि न क्वापीति करि- | स्वयंवरप्यते / भूयः स्वयंवरो भैम्या भीमेन प्रेपितोऽस्मि तत् / / 98 // विलम्बितोऽहं मार्गे च वपुर्लान्या ततस्त्वया / आगन्तव्यं चैत्रशुक्ल गमने दपश्चमीदिवसे प्रगे // 19 // आहूयेति गते दूते दधिपर्णनरेश्वरः / भैम्यर्थी लग्ननैकट्याद् दूरयानाक्षमोऽतमत् // 1200 // षड्यामी धिपर्णस्य चिन्ता | व्यवधाख्याद् दुर्मनाः स मनागथ। प्रोचे कुब्जेन किं राजन् ! खिद्यसे ? शंस कारणम् // 1 // मयि मित्रे कलापात्रे पार्श्वस्थे * दुःखितो भवान् / इत्ययुक्तं ततः शाधि व्याधिज्ञाने हि भेषजम् // 2 // दधिपर्णोऽवदत् कुब्ज ! श्रूयतां नलभूपतिः। मृतस्ततः पुनः |भैम्याः प्रातर्भावी स्वयंवरम् // 3 // तत्राहूतोऽस्म्यहं मार्गः पुनर्गम्यो घनैदिनैः / लग्नस्य व्यवधानेऽस्ति षड्याम्येवेति का ? गतिः | // 4 // नलस्य वरणात्पूर्वमिदानीं मार्गविघ्नतः / भैम्यां स्पृहा हहा हाऽभून्मन्दभाग्यस्य मे मुधा // 5 // सखे ! तचिन्तयोपायं | श्रुत्वैवं कुब्जकोऽप्यथ / दध्यौ विषादाकि मेध्दः कौँ दीर्णो न शृण्वतः // 6 // यद्वा सर्वज्ञवाग्मिथ्या यदि स्याद् भृश्चलेद्यदि / | इच्छेत्तदाऽन्यं भर्तारं भीमपुत्री पतिव्रता // 7 // इच्छेद् वा दैवतस्तर्हि को बहेन्मयि जीवति / मनसाऽपि स्पृशेत्सिही सिंहे पार्श्वस्थिते | हि कः ? // 8 // प्रकाशमवदद् कुब्जो दधिपर्ण न भीमजा / सतींमन्याऽन्यं वृणीते ज्योत्स्ना किं ? भास्करं भजेत् // 9 // महासती | दवदन्ती यद्येवं तु व्यवस्थति जीवत्येव तदा पृथव्यां नलराजोऽपि निश्चितम् // 10 // चेचित्रमत्र तत्तूर्ण चल्यतां ताम्य मा मुधा / // 27 // | यामैस्त्वां कुण्डिनं पभिः प्रापयिष्यामि निश्चितम् // 11 // परं ममाऽपय स्थं दृढं जात्याश्वसंयुतम् / सूर्योदये नये त्वां विद्याधरव

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