Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 270
________________ श्रीअमम जिनचरित्रम् शीलप्रभावात् चौर बन्ध|त्रोटनम् // 258 // | // 69 / / ज्ञात्वा तां चंद्रयशसः प्रीतिपात्रं स तस्करः। देवि ! मां रक्ष रक्षेति जल्पन् शरणमागमत् // 70 // प्रतीक्षध्वं क्षणमत्रेत्युक्त्वाऽऽरक्षनरान् सती / चौरमचे मा स्म भैषीस्त्रास्से त्वां निवृतो भव // 71 // तमाश्वास्येति सा चक्रे सतीत्वश्रावणामिति / महासत्यस्मि चेद्वन्धाः सद्योऽप्यस्य त्रुटंतु तत् / / 72 // भैमीत्युक्त्वाच्छोटयत्त्रिश्चौर ,गारवारिभिः। तैबन्धास्तुत्रुटुर्नागपाशास्तायेनखैरिव // 73 / / बंधेषु त्रुटितेष्वाशु भैम्याः पृष्ठे स तस्करः। मातुर्बालकवद् बिभ्यदारक्षेभ्यो न्यलीयत / / 74 / / आरक्षपुरुषाश्चक्रुरलं कलकलं तदा / ऋतुपर्णनृपोप्यागात्तमाकातिविस्मितः // 75 // भीमजां स मृदु प्रोचे पुत्रि! मुश्च मलिम्लुचम् / राजधर्मो ह्ययं | | दुष्टनिग्रहः शिष्टपालनम् // 76 / / अधमा प्राणिनोज्न्यस्त्रीधनलोभांधचेतसः। राजदंडभयादेव वर्ततेऽत्र व्यवस्थया // 77 // चौराद्यु| पद्रवेभ्यो हि त्रातुं पृथ्व्याः करं नृपः / आदत्ते तदकुर्वस्तु तत्पापैर्लिप्यते स्वयम् / / 78 / / अथोवाच दवदंती सत्यमेतत्परं पितः। | आर्हत्याः शरणे मेऽसौ प्राप्तो न म्रियते ध्रुवम् // 79 // जैनाः साधौ च चौरे च करुणां शरणागते / तन्वन्ति तुल्यां विप्रे चांत्यजे च द्युतिमिन्दुवत् // 80 // जीवो हि सर्वथा पाल्यो जनैर्दुष्टोऽपि शिष्टवत् / जगद्विलक्षणं जैनलक्षणं हि कृपालुता // 81 // अस्यात्तिर्म| य्यपि स्वामिन् संक्रान्ता दुष्टरोगवत् / क्षम्यतामपराधोऽपि पितर्मदपरोधतः / / 82 / / नृपेण मुक्तश्चौरोऽथ प्राणदानोपकारतः / जन नीति नमनित्यं दवदंत्याऽन्यदौच्यत // 83 // वत्स कोऽसीति सोऽप्याख्यच्छ्रीतापसपुरेशितुः। साथैशस्य वसंतस्य दासोऽहं पिंगलाभिधः // 84 // तस्यैव गेहात खात्रेण हत्वा क्रोशं व्रजनिशि / चौरैगृहीतो मार्गेऽहं क क्षेमः खामिवंचिनाम् ? // 85 / / अथागत्येह वृत्त्यर्थी नृपमेनमवालगम् / अतिविश्रंभतोऽभूवं सर्वत्राप्यस्खलद्गतिः // 86 // अन्यदा राजहमतिविजने संचरत्रहम् / दैवादपश्यं श्रीचन्द्रवत्या रत्नकरण्डिकाम् / / 87 // तदाऽस्यां रक्षकाभावात्प्रोषितस्य स्त्रियामिव / चुक्षोभ लोभतः पारदारिकस्येव मे मनः सर्ग-६

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