Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text ________________ श्रीअमम जिनचरित्रम् मत्तहस्तिवशीकरणम् // 266 // | यन्तं जनं पुरः / व्यालं व्यालोकयामास नलः प्रबलविक्रमम् // 20 // प० कु०॥ उर्वीकृत्य भुजामुर्वीभुजा वप्रयुजा तदा। दधिप णेनोदघोषि खयमित्याकुलात्मना // 21 // एनं मे हस्तिनं मत्तं वशे यः कोपि कोपिनम् / करोत्यवश्यं तस्याहं प्रयच्छाम्याशु वाञ्छि| तम् // 22 // श्रुत्वेति कुब्जोऽभाषिष्ट हस्ती मत्तः क स क सः / अवश्यं वश्यतां नेष्ये पश्यतां वः क्षणेन तम् // 23 // जल्पत्येवेति | शौर्येणाकुब्जे कुब्जे स कुञ्जरः / वेगेन दुर्द्धरस्तत्राजगाम यमवत्पुरः // 24 // स्फूर्त्या मूर्त्या च तं कालमपि व्यालं शृगालवत् / मन्य मानोऽभिमानोचः कुब्जा सिंह इवाभ्यगात् // 25 // मा विनश्य प्रविश्य त्वमस्याग्रे नश्य नश्य भोः / इत्युक्तोऽपि जनैधैर्यात्पमा |मामस्पृशन्निव / / 26 / / कुब्जोऽवादीत्पुरोभूय रेरे शुण्डाल बालवत / किं? गर्जन्नूजितं कांदिशीकं लोकं निशुम्भसि // 27 // यु०॥ | एह्येहि दर्पदुर्दान्तदन्तावलबलं तव / पश्यामीति भुजास्फोटं कुर्वन्नाह्वास्त स द्विपम् // 28 // कोपाचचाल वाचालमनुकुब्जं स सिन्धुरः / हन्तुं नावहितं शुंण्डादण्डाग्रेणाऽशकत्पुनः॥२९॥ आपतन् विलुठन्नग्रेऽपसरन् प्रसरन्नपि / प्रविशन् निःसरन् गात्रमध्येनोर्द्ध | समुच्छलन् // 30 // पुरतः पृष्ठतस्तूर्ण वामदक्षिणपक्षयोः। स्फुरन् कण्टकवत्कुब्जो द्विपं वश्चयते स्म तम् // 31 // यु०॥ चक्रवद् भ्रमणैर्भूयो भूयो लांगुलताडनैः। अंगुष्ठांगुलिसम्मात्पुष्करस्य च पीडनैः // 32 // रुक्षवाक्त नैर्लेष्ठुहननैर्वेगकारणैः। नरेन्द्रोऽद| मयत्कुब्जमूर्तिया॑लं नलः क्षणात् // 33 // पुनः कोपाद् धावमानं पटे परिणमय्य तम् / दन्ते दत्वा पदं शैलमिवारोहत् स सिंहवत् | // 34 // सोऽग्रासनमथाऽध्यास्य पादग्रन्थि कलापके / दृढयित्वा चपेटाभिः कुम्भावास्फालयन्मुहुः // 35 // कलापताडनोन्मुक्तची|त्कारं करिणं स तम् / नर्तयन्नंकुशं तत्र प्रसरांस्त्रीनचीकरत् // 36 / / असत्पुण्यैरयं कोपि सुरो विद्याधरोऽथवा / इहाययौ ययौ यस्य | वश्यतां हेलया द्विपः // 37 // इत्थं कृतस्तुतेः पौरैः सूतोद्घुष्टजयध्वनेः। तस्य कण्ठेऽक्षिपत् राजा वप्रस्थः स्वर्णशृंखलाम् // 38 // सर्ग-६ // 266 //
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