Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 279
________________ // 267 // | तुष्टदधिपराज्ञा कुब्जस्य द्रव्यादि दानम् |तं सृष्टं मदनेनेव नलः कृत्वाऽतिकोमलम् / नीत्वालानं द्विपं कक्षानाड्योत्तीर्णः सुखं स्वयम् // 39 // नीतः प्रधानरभ्यणे दधिपर्णस्य | वेश्मनि / अकृतानतिरध्यासि स्वान्ते तेनापि मित्रवत् // 40 // किमन्यदपि वेत्सीति दधिपर्णनृपोदितः / कुब्जोऽशंसत् सूर्यपाका जाने रसवतीं नृप ! // 41 // सूर्यपाक रसवतीं द्रष्टुं राजा सकौतुकी / शालितन्दुलशाकादि सर्व तस्याऽर्पयद द्रुतम् // 42 / / विद्या सौरीं जपन् सूर्यतापे मुक्त्वा चरुन् गुरून् / दिव्या नव्यां रसवतीं कुब्जमूर्तिनलोऽकरोत् // 43 // कल्पवृक्षादेवोद्भूतां तां रोगश्रमनाशिनीम् / स राजा सपरीवारोऽरसद्रसवतीं मुदा // 44 // नृपोवादीद् गुणैः कुब्ज ! वं नलो वपुषा नतु | एतां रसवतीं वेत्ति नान्यो | यसानलं विना // 45 // श्रीनलाऽवलगायां मे चिरं परिचिता ह्यसौ / तत्कि नलोऽसि ? त्वं दैवात् संजातविकृताकृतिः // 46 // यद्वा शान्तमियं चिन्ता मिथ्या मे यनलप्रभोः। गीर्वाणगर्वनिर्वाणभैषज्यं दधतो वपुः॥४७॥ द्वियोजनशतस्यान्ते स्थितस्यात्रागमः कुतः। वैरूप्यमेकाकित्वं च भवेऽस्मिन् घटतेऽपि न // 48 // ग्रामपञ्चशती टंकलक्षांशुकविभूषणैः। तुष्टः सम्मानयामास राजा कुज वयस्यवत् // 49 // ग्रामान् विमुच्य टंकादीन्यादायोचेऽथ कुब्जकः / स्वदेशे मृगयां मद्यं रक्ष हृष्टोऽसि चेन्नृप! // 50 // न्यषेधयत्तद्विरा मद्यं मृगयां च खसीमनि / नृपस्तथा यथा जज्ञे नामकोशेषु तच्छृतिः // 51 // राज्ञा कुब्जो रहोऽन्येयुः पृष्टः कस्ते कलागुरुः / | आगाः कुतः 1 क वास्तव्यः ? किमाख्यश्चासि ? शंस मे // 52 // कुब्जोऽवादीत् कोशलायां सूदोऽहं नलभूपतेः। डंडिकाख्यः कृत थास्मि तेनैवेदृक्कलापटुः॥५३॥ कूबरेण नलो द्यूते भ्रात्रा जित्वाऽखिलां महीम् / निर्वासितः सभैम्यैको भेजेऽरण्यं कुरंगवत / | // 54 // नलः कालवशात्तत्र सप्रियोऽपि व्यपद्यत / ततः श्रितोऽहं त्वां राजन् कुचरं कूबरं नतु // 55 / / श्रुत्वेति नलराजस्य वार्ता मारिवस्तदा / दधिपर्णोऽरुदद् वस्त्रच्छन्नास्यः सपरिच्छदः // 56 // सान्तःस्मितस्य कुब्जस्य पश्यतः स नरेश्वरः / स्वस्वामिनो // 267 //

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