Book Title: Bhavi Jineshwar Amamswami Charitra Mahakavya Part 01
Author(s): Muniratnasuri, Vijaykumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 265
________________ // 253 // | केवलिना स्ववृत्तान्ते निवेदिते कुलपते र्दीक्षा स्वीकारः भावनां भावयनंतः स्वेनानशनमाददे // 75 / / मृत्वा कुसुमसमृद्धे विमाने कुसुमप्रभः / नाम्ना देवोऽभवत्कल्पे प्रथमे स महर्द्धिकः // 76 // तस्य कर्णामृतं न स्याफ्रेमि ! चेत्तव धर्मगी। सर्पस्तदाऽसौ देवर्द्धिमसमामाप्नुयात् कथम् ? 77 // सोऽहं ज्ञात्वाऽवधिज्ञानान्मातस्त्वामुपकारिणीम् / नंतुमत्राऽऽगतो धर्मपुत्रस्ते चास्म्यतः परम् // 78 // आत्मानं ज्ञापयित्वेति सोऽवदत्तापसान सुरः। भैम्या। ख्याते मा स्म धर्म भद्राः कुरुत संशयम् // 79 // क्षमध्वं प्राग्भवीयं मे क्रोधदुर्बोधनँभितम् / सम्यक् पालयत श्राद्धधर्म चांगीकृतं | स्वयम् // 80 // युग्मम् // देवो देहमथाकृष्य सर्पस्य गिरिकन्दरात् / उल्लंख्य नंदिवृक्षस्य शाखायामित्यवोचत // 81 // कुरुते कोऽपि यः कोपं कुधीर्लोकाः स तत्फलात् / इदृशः स्याद्यथाऽभूवं कर्परोऽहं तपस्व्यपि // 82 // जिनधर्मे स्थिरीभृतस्तदा कुलपतिः स्वयम् / * व्रतं ययाचे वैराग्यानत्वा केवलिनं मुनिम् // 83 // सिंहकेशर्यपि माह यशोभद्रो गुरुस्तव / दीक्षां दास्यति मेऽप्यासीद्दीक्षायां गुरु रेप यत // 84 // नन्तापि कथमेषोऽभूदेतस्य गुरुरित्यमुम् / विस्मितं केवली भूयोऽप्यूचे कुलपते ! शृणु // 85 // कबरस्य नलभ्रातः |सतोऽहं कोशलेशितुः / अगां संगापुरी वोढुं राज्ञः केशरिणः सुताम् // 86 // बंधुमत्यभिधां तां चोपयम्य स्वपुरीं प्रति / वलितोड़| पश्यमेनं श्रीयशोभद्रगुरुं पथि / / 87 // तं नखाऽशृण्वं व्याख्यां मुधाकृतसुधारसाम् / श्रुतज्ञानिनमप्राक्षं कियदायुर्ममेति च // 8 // सरिरप्यपयुज्याऽऽख्यत्पंचाहमहमप्यथ / मृत्योरकृतकृत्यत्वाद् विभ्यद् वाढमकपिपि // 89 / / मूरिरुचेऽथ मां वत्स! मा भैः खीकरु संयमम् / असौ मृत्युंजयो मंत्रो देहिनां मृत्युभीहरः // 10 // ततः प्रव्रज्याऽऽज्ञयाऽस्य गुरोरद्राविहागमम् / शुक्लध्यानपरो घातिक्षयात्केवलमाप्नुवम् // 91 / / आख्यायैवं योगरोधात्प्रक्षीणाशेषकर्मकः। तदानीमगमत्सिहकेशरी पदमव्ययम् // 92 / / गीर्वाणैस्तदुवपुः |पण्यप्रदेशे निर्मितोत्सवैः। तदैव वहिसंस्कार प्रापि श्रीखंडदारुभिः // 93 // जग्राह दीक्षां विमलमतिः कुलपतिस्ततः। यशोभद्र // 253 //

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